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________________ 128 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री १२. आक्रोश-परीषह :- यदि कोई भी मुनि को ताड़न, तर्जना, आदि द्वारा कष्ट दे, अथवा कर्कश शब्द या कठोर वचन कहे, तो भी मुनि उसे सहन करे। १३. वध-परीषह :- यदि कोई मुनि को लकड़ी या हाथ, आदि से मारे, अथवा अन्य किसी शस्त्र से वध करे, तो उसे उस वध-परीषह को समता से सहन करना चाहिए। १४. याचना-परीषह :- मान और अपमान की भावना से रहित होकर मुनि भिक्षावृति करे। आवश्यक वस्तुएँ सुलभता से प्राप्त नहीं होती हैं- ऐसा विचार कर मन में दुःखी न हो, बल्कि ४२ दोषों से रहित शुद्ध आहार की गवेषणा करे। १५. अलाभ-परीषह :- मुनि को लाभान्तराय-कर्म के उदय से आवश्यक उपधि (वस्त्र, पात्र) आदि नहीं मिलने पर तथा आहार की प्राप्ति नहीं होने पर, लाभान्तराय-कर्म का उदय जानकर परीषह को सहन करे। १६. रोग-परीषह :- चिकित्सा के अभाव में रोग की पीड़ा से दुःखी न होकर मुनि समता से बीमारी को सहन करे। १७. तृण-परीषह :- तृण, आदि की शय्या में निद्रा लेने से तथा मार्ग में नंगे पैर चलने से तृण या काँटे, आदि के चुभने से होने वाली वेदना को कर्मों की निर्जरा का हेतु जानकर सहन करे। १८. मल-परीषह :- शरीर या वस्त्र में पसीने से, अथवा रज, आदि के कारण मैल, आदि जम जाने से दुर्गन्ध उत्पन्न हो, तो भी उद्विग्न न होकर समभाव से सहन करे। १६. सत्कार-परीषह :- जनता द्वारा मान-सम्मान के प्राप्त होने या न होने पर भी प्रसन्न या खिन्न न होकर समभाव रखे। २०. प्रज्ञा-परीषह :- शिष्यों को बार-बार सूत्रों का अर्थ बताना पड़े, तो अधीर होकर विद्वान् मुनि को यह विचार नहीं करना चाहिए कि इससे तो अज्ञानी होना अच्छा होता। २१. अज्ञान-परीषह :- मन्दबुद्धि के कारण शास्त्रों का अध्ययन न कर पाने से खिन्न हुए बिना मुनि को परिश्रमपूर्वक अपनी साधना में लगे रहना चाहिए। २२. दर्शन-परीषह :- अन्य मतावलम्बियों के चमत्कार व आडम्बर को देखकर उनका अनुमोदन नहीं करना चाहिए एवं स्वयं को हीन नहीं मानना चाहिए। इस प्रकार आडम्बरों को देखकर उत्पन्न हुई अश्रद्धा को मिटाना दर्शन परीषह-है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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