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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप 193 २. देशावकाशिक-व्रत के पाँच अतिचार : १. आनयन-प्रयोग - अपने मर्यादित क्षेत्र के बाहर से वस्तु लाना या मंगवाना। प्रेष्य-प्रयोग - मर्यादित क्षेत्र से बाहर किसी वस्तु को भेजना। ३. शब्दानुपात - मर्यादित क्षेत्र के बाहर शब्द-संकेत से अपना कार्य करना। ४. रूपानुपात - मर्यादित क्षेत्र के बाहर रूप-संकेत (इशारे) आदि के द्वारा कार्य करवाना। ५. पुद्गल-प्रक्षेप - कंकर, पत्थर, आदि फेंककर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना। ११. पौषधोपवास-व्रत :- यह व्रत मुख्य रूप से निवृत्तिपरक जीवन की साधना के निमित्त है। पौषध शब्द का अर्थ है- धर्माचार्य के समीप या धर्मस्थान में रहना। धर्मस्थान में निवास करते हुए उपवास करना, पौषधोपवास है। इसमें पौषध एवं उपवास- दो शब्दों का निर्देश है। उपासकदशांगसूत्र की टीका में पौषध शब्द का अर्थ अष्टमी, चतुर्दशी, आदि पर्वकाल किया है एवं उपवास का अर्थ चारों प्रकार के आहार का त्याग किया गया है। इस प्रकार पर्वकाल में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना पौषध है। पौषध में आत्मचिन्तन, आत्मशोधन और आत्मविकास का पुरुषार्थ ही मुख्य रूप से किया जाता है। इस तरह आठ प्रहर तक जो पौषध किया जाता है, वह प्रतिपूर्ण पौषध कहा जाता है। पौषध-व्रत के पाँच अतिचार : १. पौषध-योग्य स्थान आदि का भली प्रकार से निरीक्षण न करना। २. आसन, आदि का प्रमार्जन नहीं करना, अथवा असावधानी से प्रमार्जन करना। ३. मल-मूत्र त्यागने के स्थान का निरीक्षण न करना। ४. मल-मूत्र त्यागने की भूमि को साफ किए बिना या प्रमार्जित किए बिना उसका उपयोग करना। पौषधोपवास का सम्यक् प्रकार से पालन न करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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