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92 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
१. सामायिक २. देशावकाशिक ३. पौषधोपवास और ४. अतिथि संविभाग। ६. सामायिक-व्रत :- सामायिक शिक्षाव्रत का प्रथम व्रत है, जिसके निरन्तर अभ्यास से साधक आत्म-विकास के चरम लक्ष्य को प्राप्त करता है। सामायिक समभाव की साधना है। सामायिक के दो प्रकार हैं- आगार सामायिक और अनगार-सामायिक। आगार-सामायिक, अर्थात् गृहस्थ की सामायिक, जो अल्पकालिक है। अनगार-सामायिक, अर्थात् श्रमण की सामायिक, जो जीवनपर्यन्त के लिए होती है। नियत समय तक हिंसादि पाप-प्रवृत्तियों को तीन योग व दो करण से करने का त्याग करना ही श्रावक का सामायिक-व्रत है। सामायिक-व्रत के पाँच अतिचार :
१. मनःदुष्प्रणिधान - सामायिक में मन में सांसारिक प्रपंचों की उधेड़बुन चलते रहना।
२. वचनदुष्प्रणिधान - सामायिक में वचन का दुरुपयोग करना, अपशब्दों का प्रयोग करना।
३. कायदुष्प्रणिधान - सामायिक में शरीर से सावध प्रवृत्ति करना, शरीर को बारम्बार हिलाना, प्रसारना, आदि। ___४. स्मृत्यकरण - सामायिक की स्मृति न रखना।
५. अनवस्थितता - सामायिक को अस्थिर होकर या शीघ्रता से करना, विधि के अनुसार नहीं करना। १०. देशावकाशिक-व्रत :- दिशापरिमाण व्रत में जीवन भर के लिए दसों दिशाओं की मर्यादा की जाती है। उन दिशाओं की मर्यादाओं के परिमाण में कुछ घण्टों के लिए या दिनों के लिए विशेष मर्यादा निश्चित करना देशावकाशिक-व्रत है। 100 दिग्परिमाण-व्रत एक वर्ष के लिए या चार मास के लिए भी किया जाता है। देशावकाशिक-व्रत प्रहर, मुहूर्त व दिन भर के लिए किया जाता है। क्षेत्र-मर्यादा को संकुचित करने के साथ ही उपलक्षण से उपभोग-परिभोगादिरूप अन्य मर्यादाओं को भी संकुचित करना ही इस व्रत में गर्भित है। श्राद्ध-दिनचर्या में जिन चौदह नियमों का उल्लेख मिलता है, उन्हीं चौदह नियमों का चिन्तन प्राचीन आचार्यों ने इस व्रत में किया है।
100 योगशास्त्र, ३/८४.
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