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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 83
की प्रभावना होती हो, वे सभी कार्य श्रावक के लिये निज द्रव्य व्यय करके करणीय माने गए हैं। कहा गया है कि जो श्रावक अपनी क्षमता के अनुरूप जिनशासन की प्रभावना के लिए द्रव्य का व्यय नहीं करता है, वह जिनप्रवचन का वंचक, अर्थात् द्रोही माना जाता है, क्योंकि वह वस्तुतः जिनशासन के विच्छेद की इच्छा रखनेवाला है, अतः गृहस्थ आराधक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुरूप जिनप्रवचन की प्रभावना के लिए द्रव्य का व्यय करे। इस प्रकार संवेगरंगशाला में गृहस्थ को अपने सद्रव्य का व्यय करने हेतु दस स्थानों का उल्लेख लगभग १३० गाथाओं में अति विस्तार से किया गया है। श्रावक के व्रत :
संवेगरंगशाला में दर्शनप्रतिमा के पश्चात् व्रतप्रतिमा का उल्लेख मिलता है। उसमें व्रतप्रतिमा के अन्तर्गत प्राणीवध, असत्य भाषण, अदत्त-ग्रहण, अब्रह्म-सेवन और परिग्रह-इन पाँच व्रतों का उल्लेख हुआ है। 88 संवेगरंगशाला में तीन गुणव्रतों, अर्थात् दिशापरिमाण, उपभोग-परिभोगपरिमाण और अनर्थदण्ड-विरमण-इन तीन गुणव्रतों का स्पष्टतः उल्लेख नहीं है। इसके अतिरिक्त चार शिक्षाव्रतों में, संवेगरंगशाला में तीसरी प्रतिमा के रूप में सामायिकप्रतिमा और चौथी प्रतिमा के रूप में पौषधप्रतिमा का उल्लेख हुआ है, किन्तु देशावकाशिक-व्रत का उल्लेख नहीं है। यद्यपि प्रतिमाओं की इस चर्चा के संदर्भ में अतिथिसंविभागवत का भी उल्लेख नहीं हैं, किन्तु श्रावक के दान-कर्तव्य के अन्तर्गत मुनि को आहार-दान, वसतिदान, आदि का उल्लेख होने से तथा सद्रव्य के व्यय करने के दस स्थानों में मुनि को वस्त्र, औषधि, आदि प्रदान करने के उल्लेख से हम यह मान सकते हैं कि चाहे जिनचन्द्रसूरि ने अलग से इन व्रतों का उल्लेख न किया हो, किन्तु उन्हें श्रावक के द्वारा इन व्रतों का पालन अभिप्रेत है। पुनः, यहाँ गाथा क्रमांक २७३७ में इन व्रतों के बन्ध आदि अतिचारों का संकेत हुआ है। यद्यपि यहाँ सभी अतिचारों का कोई उल्लेख नहीं है, फिर भी इतना तो स्वीकार किया जा सकता है कि जिनचन्द्रसूरि की दृष्टि में श्रावक व्रतों का निरतिचार पालन करे, यह अभिप्रेत रहा है। चाहे संवेगरंगशाला में श्रावक के बारह व्रतों का सुस्पष्ट विवेचन अनुपलब्ध है, किन्तु जिनचन्द्रसूरि ने यहाँ उनका संकेत तो अवश्य ही किया है, अतः अग्रिम पृष्ठों में हम श्रावक के पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों का उनके अतिचारोंसहित मात्र संक्षेप में निर्देश करेंगे।
88 संवेगरंगशाला, गाथा २७३६.
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