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समाधिमय मृत्यु का संकल्प एक भव्य आत्मा में ही हो सकता है। अधिकतर लोग या तो मृत्यु से डरते हैं या फिर जीवन से हार जाते हैं।
साध्वी प्रियदिव्यांजना श्रीजी ने अपने शोध-प्रबन्ध के लिये एक अनूठे विषय का चुनाव किया है। अन्तिम क्षणों को कैसे आराधनामय बनाया जाय, यह इसका प्रतिपाद्य विषय है।
इस विषय में पूर्वाचार्यों ने कई ग्रन्थों/प्रकरणों का लेखन किया है। खतरगच्छाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि म. द्वारा रचित संवेगरंगशाला एक ख्यातनाम अनुपमेय विशाल ग्रन्थ है।
इन ग्रन्थों पर परिशीलन करके एक विराट् कार्य सम्पादित किया है।
यह शोध-प्रबन्ध समाधि का कारक बनेगा और जीवन व मृत्यु को महोत्सव बनाते हुए आराधना की ओर उन्मुख करेगा, ऐसा विश्वास है।
__ मेरा शुभ आशीर्वाद है कि साध्वी दिव्यांजना श्रीजी साहित्य-संशोधन-लेखन आदि के क्षेत्र में लगातार कार्य करती रहें... प्रगति साधते रहें।
हैदराबाद
- मणिप्रभसागर जी
०७.०७.०७
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