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शुभाशीर्वाद
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में ख्रतरगच्छ के आचार्यों का साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अवदान रहा है। उनके द्वारा रचित लगभग पाँच हजार कृतियों की जानकारी आज भी उपलब्ध है।
खरतरगच्छ के आचार्यों में आचार्य जिनचन्द्रसूरि (प्रथम) का नाम उनकी महत्वपूर्ण कृति 'संवेगरंगशाला' के कारण सुज्ञात है। संवेगरंगशाला एक वैराग्य-प्रेरक रचना है। यह कृति समाधिमरण सम्बन्धी ग्रन्थों में बृहद्काय है और प्राकृत भाषा में निबद्ध है। लगभग एक सहस्र वर्ष पूर्व रचित इस कृति को आधार बनाकर साध्वी प्रियदिव्यांजना श्रीजी ने डॉ. सागरमल जैन के मार्गदर्शन में जो शोधकार्य किया और जिस पर उन्हें जैन विश्वभारती संस्थान लांडनूं से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई, वह कृति आज 'जैनधर्म में आराधना का स्वरूप' नाम से प्रकाशित हो रही है- यह प्रमोद का विषय
साध्वी प्रियदिव्यांजना श्रीजी खरतरगच्छ संघ की ही एक साध्वी है। वे अध्ययनशील एवं सौम्य स्वभाव वाली है। उनकी इस कृति के प्रकाशन के अवसर पर मैं उन्हें बधाई देती हूँ और आशा करती हूँ कि वे श्रुतसेवा के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर हो।
इस कृति के मार्गदर्शन, सम्पादन एवं प्रकाशन में डॉ. सागरमलजी जैन और प्राच्यविद्यापीठ शाजापुर ने जो सहयोग देकर यह कार्य पूर्ण किया है उसकी अनुमोदना करते हुए उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करती हूँ।
उज्जैन आषाढ़ शुक्ला एकादशी २०६५
महत्तरा पद विभूषिता साध्वीवर्या
श्री विनिताश्रीजी म.सा.
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