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________________ ३५ जैन-दर्शन के नव तत्त्व अग्नि और वायु का श्री उमास्वाति ने त्रसजीवों में समावेश किया है। क्योंकि त्रस का अर्थ है गतिशील होना। अग्नि और वायु गतिशील हैं इसलिए वे त्रस हैं। स्थावर जीव तीन ही माने गये हैं - पृथ्वी, पानी और वनस्पति। ये स्थावरजीव एकेन्द्रिय हैं। इन जीवों का केवल शरीर ही होता है। स्थावरकाय जीव की सजीवता आचारांगसूत्र के शस्त्रपरीक्षा अध्ययन में स्पष्टतः सिद्ध की गई है।७५ वनस्पतियों पर प्रयोग करके, वनस्पतियों में जीव है, यह बात जगदीशचन्द्र बसु और अन्य वैज्ञानिकों ने सिद्ध की है। उसका विस्तृत वर्णन आगे किया गया है। पृथ्वी आदि की सजीवता द्वीन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक के जीवों में चेतना प्रकट रूप से दिखाई देती है। वे अपने हित-अहित में प्रवृत्ति-निवृत्ति करते हुए दिखाई देते हैं। भूख, प्यास लगने पर अन्न-पानी की खोज भी करते हैं। वे शत्रु-मित्र भाव की अनुभूति करते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीवों में भी दिखाई देती है। उनकी चेतना को अव्यक्त होने से, हमारी आँखें देख नहीं सकतीं। परन्तु हमारे समान ही वे जीव भी सुख-दुःख, भूख, प्यास आदि का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार अच्छे-बुरे के प्रतिकार के लिए प्रयत्न भी करते रहते हैं। वनस्पति, वृक्ष, पौधे आदि में तो उनके बुद्धिविकास आदि की प्रक्रिया प्रकट रूप में दिखाई देती है। अन्य पृथ्वी आदि में सजीवता के कुछ लक्षण. इस प्रकार हैं जिस प्रकार मनुष्य-शरीर जख्मी होने के बाद भर जाता है, उसी प्रकार खोदी हुई पृथ्वी, खान आदि भी पुनः भर जाती हैं। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में वृद्धि होती है उसी प्रकार पर्वत भी बढ़ते हैं। मनुष्य के शरीर का भंग होने पर उसमें वृद्धि नहीं होती, उसी प्रकार खान में से पत्थर आदि निकालने पर उनका विकास नहीं होता। जिस प्रकार ठण्ड में मनुष्य के मुख से गर्म भाप निकलती है, उसी प्रकार कुआँ आदि से भी भाप निकलती है। मनुष्य-शरीर के समान ही पानी भी सर्दी में गरम और गर्मी में ठण्डा रहता है। ज्यादा ठंड होने पर मनुष्य-शरीर के समान पानी भी सिकुड़ कर बर्फ का रूप धारण करता हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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