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गुरू और सच्चे शास्त्रों में सच्ची श्रद्धा रखता है, उसे “अमूढ़ दृष्टि” या " सम्यग्यदृष्टि" ऐसा कहते हैं ।
जैन दर्शन के नव तत्त्व
(५) उपगूहन अपने गुणों को और दूसरों के अवगुणों को जो ढंक देता है और आत्मा को निर्मल बनाता है, वह 'उपगूहन' है। स्वयं के गुणों की प्रशंसा हो, साथ ही स्वयं की प्रसिद्धि हो, ऐसी भावना सम्यग्यदृष्टि जीव नहीं रखता। इसी प्रकार दूसरे को निम्न बताने के लिए उसके दोष भी प्रकट नहीं करता। परंतु धर्म की वृद्धि कैसी होगी, सिर्फ यही देखता है । जीव के हित के लिए वह सत्यमार्ग दिखाता है और असत्य मार्ग का निषेध करता है।
(६) स्थिरीकरण जो सम्यग्दृष्टि आत्मा स्वयं को और दूसरो को योग्य. मार्ग पर स्थापित करके उनके मन को स्थिर करता है, उसे 'स्थिरीकरण' अंग से युक्त सम्यग्दृष्टि आत्मा कहा जाता है। कोई भी संकट आने पर उसकी धार्मिक भावना शिथिल नहीं होती हो, जो किसी भी परिस्थिति मे धर्म पर दृढ़ रहता हो और यदि कोई दूसरा व्यक्ति धर्म-पालन में शिथिल होता हो, तो उसे भी दृढ़ करता हो, यह 'स्थिरीकरण' है। अनेक प्रकार के उपायों से आत्मा को धर्म में स्थिर करना, धर्मध्यान में दृढ़ रहना, आर्तध्यान न करना, प्रतिकूलता में न घबराना, अनुकूलता में अहंकार न होना, इसे 'स्थिरीकरण' कहा जाता है । (७) वात्सल्य जिस प्रकार गाय अपने बछड़े पर निस्वार्थ प्रेम करती है, उसी प्रकार स्वधर्मी बंधु पर निस्वार्थ प्रेम करना यह 'वात्सल्य' अंग है । जिस प्रकार गाय प्रतिफल की आशा नहीं रख कर बछड़े पर प्रेम करती है, उसी प्रकार सम्यग्यदृष्टि जीव तन-मन-धन से अपने स्वधर्मी बंधुओं से प्रेम करके उनकी मदद करता है । सम्यग्दृष्टि जीव किसी का भी दुःख नहीं देख सकता। किसी का भी दुःख देखने पर उस दुःख को दूर किए बिना उसे चैन नहीं आता। यही " वात्सल्य" अंग है । (८) प्रभावना दूसरों के अज्ञान - अंधकार को दूर करके विद्या बल और बुद्धिबल के द्वारा शास्त्रों में कही हुई बातों पर उनका विश्वास दृढ़ करना और अपने सामर्थ्य के अनुसार जैन धर्म का प्रभाव स्थापित करना, यही " प्रभावना" है । अपने धर्म का प्रभाव कैसे बढ़ेगा, सब की आत्माएँ धर्ममय कैसे बन सकेंगी, इसी का विचार सम्यग्दृष्टि करता रहता है। वह स्वयं के ज्ञान, विद्या, वैभव, धन, मन, तन से तथा दान, तप आदि के द्वारा धर्म की प्रभावना करता है।
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सम्यक्त्व के इन आठ अंगों द्वारा सम्यग्दृष्टि आत्मा धर्म की प्रभावना करता है, महिमा बढ़ाता है और प्रसिद्धि करता है । जो जिज्ञासु इन आठ अंगों को जानता है, वही मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
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