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________________ 2 । जैन-दर्शन के नव तत्त्व नेमिचन्द्राचार्य - बृहद्रव्यसंग्रह - भा० पृ० ४ जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण जेण णिदिटं। देविंदविंदवंदं वन्दे तं सव्वदा सिरसा ।। १।। उमास्वाति-(अनु० पं० सुखलालजी)-तत्त्वार्थसूत्र, अ० १, सू० ४, पृ० ८ जीवाजीवानवबन्धसंवरनिर्जरा मोक्षास्तत्त्वम् ।। ४।।। उमास्वाति - प्रशमरतिप्रकरणम् - सूत्र १८६, अधिकार ११, पृ० ६० जीवाजीवाःपुण्यं पापास्त्रवसंवराःसनिर्जरणाः। बन्धो मोक्षश्चैते सम्यक् चिन्त्या नवपदार्थाः ।। १८६ ।। उत्तराध्ययन - २८ भा० १४ (क) जीवाजीवा व बंधो य पुण्णं पावासवो तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो सन्तेए तहिया नव।। (ख) अभयदेवसूरिटीका - स्थानांगसूत्र, ठा० ६, पृ० ४२२ नव सब्भाव पयत्था पत्रता तंजहा जीवा अजीवा पुणण पावो आसवो संवरो निज्जरा बंधो मोक्खो।। अभयदेवसूरिटीका - समवायांग-पृ० ११० जीवाजीवासवबंधश्च संवरनिर्जरापुण्यापुण्यमोक्षस्यात्रवपदार्थान। हरिभद्रसूरि - षड्दर्शसमुच्चय का० ४७, पृ० २११ जीवाजीवौ तथा पुण्यं पापमानवसंवरौ। बन्धो विनिर्जरामोक्षौ नव तत्त्वानि तन्मते ।।४७।। कुन्दकुन्दाचार्य - पंचास्तिकाय - भा० १०८, पृ० १७१ जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च आसवं तेसिं। संवरणिज्जरबंधो मोक्खो य हंवति ते अट्ठा ।।१०८ ।। श्रीमन्नेमिचन्द्राचार्यसिद्धांतचक्रवर्ती - गोम्मटसार (जीवकाण्ड) भा० ६२० पृ० २२६ णव य पदत्था जीवाजीवा तांण च पुण्णपावडुंग। आसवसंवरणिज्जरबंधा मोक्खो य होंतीति ।। ६२० ।। * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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