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जैन दर्शन के नव तत्त्व
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प्रकार जीव को उसके शुभ और अशुभ ऐसे दोनों प्रकार के कर्मों के द्वारा बंधन में रखा जाता है । दूसरे शब्दों में मोक्ष का अर्थ है- "राग और द्वेष का पूर्ण क्षय" । वस्तुतः कर्म - बंधन से छुटकारा और पूर्व में संचित कर्मों का पूर्ण रूप से क्षय होना ही 'मोक्ष' है । तात्त्विक दृष्टि से ऐसा कहा जा सकता है कि आत्मा का अपने शुद्ध स्वरूप में चिर काल स्थिर रहना यही मोक्ष या मुक्ति है ।
मोक्ष आत्मविकास की पूर्ण अवस्था है और पूर्णत्व में किसी प्रकार का भेद नहीं होता । मोक्ष या मुक्ति यह कोई स्थान - विशेष नहीं, वरन वह आत्मा के पूर्ण शुद्ध और चिन्मय स्वरूप की प्राप्ति है । इस अवस्था को वैदिक दर्शन में " सच्चिदानंद" अवस्था कहा है और जैन दर्शन में “सिद्धावस्था" कहा है।
जब तक कर्म का पूर्णतया क्षय नहीं होता, तब तक आत्मा का शुद्ध स्वभाव आवरित रहता है। जैन दार्शनिकों की दृष्टि से मुक्त जीव अनंतचतुष्टयअनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख एवं अनंतवीर्य का साक्षात्कार कर लेता है। जैन दार्शनिक ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं रखते, इसलिए उनके मतानुसार जीव स्वयं ही अपने प्रयत्नों से मोक्ष प्राप्त करता है । इसी प्रकार विश्व की उत्पत्ति का मूल कारण भी ईश्वर नहीं है । आत्मा स्वयं ही अपने संसार का कर्ता और भोक्ता है।
जैन दर्शन का प्रमुख उद्देश्य यह है कि, आत्मा दुःखों से मुक्त होकर अनंत सुख की ओर जाए। जीव और पुद्गल इन दोनों का संबंध अनंतकाल से चल रहा है। पुद्गल के बाह्य संयोग से ही जीव विविध प्रकार के दुःखों का अनुभव करता है। जब तक जीव और पुद्गल इन दोनों का संबंध नष्ट नहीं होता, तब तक आध्यात्मिक सुख संभव नहीं होगा। मोक्ष के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ही श्रेष्ठ मार्ग बताया है। अहिंसा और अनेकान्त ये जैन दर्शन के मुख्य सिद्धान्त हैं। विचारों में अनेकान्त और व्यवहार में अहिंसा आने पर जीवन सुखी और शान्त होता है । आत्मवाद, कर्मवाद और अनेकान्तवाद, सप्तभंगी आदि जैन दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त हैं ।
मुक्तात्मा कर्म - शरीर, इन्द्रियाँ, मन और तज्जन्य विकल्प से रहित होकर अनंतवीर्य, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन और अनंतसुख में मग्न होता है । मुक्तात्मा निद्रा, तंद्रा, भय, भ्रान्ति, राग, द्वेष, पीड़ा, शोक, मोह, जन्म, जरा, मरण, क्षुधा, तृष्णा, मत्सर, रति, अरति, शीत, उष्ण, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि सब विकारों से रहित होता है । मोक्ष यह आत्म - विकास की पूर्ण अवस्था है । प्रत्येक आत्मा ज्ञान, दर्शन आदि अनंत गुणों से परिपूर्ण है। उन्हीं गुणों के प्रकटन और विकास का नाम 'मोक्ष' है
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