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________________ जैन-दर्शन के नव तत्त्व तत्त्व कितने हैं ? तत्त्व कितने हैं इस प्रश्न का उत्तर अलग-अलग ग्रंथों ने अलग-अलग दिया है। संक्षिप्त और विस्तार की दृष्टि से प्रतिपादन की तीन मत प्रणालियाँ हैं। पहली मत-प्रणाली के अनुसार तत्त्व दो हैं- जीव और अजीव। दूसरी मत-प्रणाली के अनुसार तत्त्व सात हैं- जीव, अजीव, आसव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष । दार्शनिक ग्रंथों में पहली और दूसरी मत-प्रणाली मिलती हैं। आगम-साहित्य में तीसरी मत-प्रणाली उपलब्ध है। स्थानांगसूत्र आदि में दो राशियों का भी उल्लेख हैजीवराशि और अजीवराशि। 'द्रव्यसंग्रह' में तत्त्वों के दो भेद बताये गये हैं।' . आचार्य श्री उमास्वाति ने तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के प्रथम अध्याय के चौथे सूत्र में सात तत्त्वों का उल्लेख किया है- जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। पुण्य और पाप इन का आस्रव या बंध तत्त्व में समावेश कर तत्त्वों की संख्या सात मानी गई है। प्रश्न उपस्थित होता है कि उमास्वाति जैसे महान् आचार्य ने सात तत्त्व माने हैं तो फिर मैं नौ तत्त्व क्यों कहता हूँ ? इसका कारण यह है कि संपूर्ण आगम-साहित्य और कुछ आगमोत्तर ग्रंथों में नौ तत्त्व माने गये हैं। स्वयं आचार्य उमास्वाति ने भी 'प्रशमरति-प्रकरण' में नौ पदार्थ बताए हैं। उत्तराध्ययनसूत्र, स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, आचार्य कुन्दकुन्द का समयसार, हरिभद्र का षड्दर्शनसमुच्चय तथा पंचास्तिकाय में भी नौ तत्त्वों का ही उल्लेख हैं। तत्त्व सात या नौ ? प्रश्न उपस्थित होता है कि तत्त्व नौ ही क्यों ? सात क्यों नहीं? वस्तुतः इसमें कुछ भी विरोध नहीं है। जीव ही उसका एकमेव कारण है। सात तत्त्वों को मानने वाले पुण्य-पाप का निषेध करके सात तत्त्वों को ही मानेंगे ऐसा नहीं है अपितु आग्नव तत्त्व में पुण्य-पाप का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से यह माना जाता है कि "सात तत्त्व हैं भी और नहीं भी"। पुण्य-पाप-तत्त्वानुरूप ऐसा प्रतिपादन किया गया है कि तत्त्व नौ ही हैं, सात नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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