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जैन दर्शन के नव तत्त्व
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करता रहा है, किन्तु कर्मों की उपस्थिति के कारण वह संसार-सागर को पार करने में समर्थ नहीं हो पाता।
जीव आठ कर्मों के चक्र में इस प्रकार बँधा हुआ है कि वह अपने स्वरूप को भी विस्मृत कर चुका है। जब तक वह कर्मों से बद्ध है तब तक संसार चक्र निरन्तर चलता ही रहता है । कर्मों के इस बन्धन से कैसे छूटा जाय, इस विषय पर जब तक विचार नहीं होता तब तक इस संसारचक्र का भी निरोध नहीं होता। इसकी गति निरन्तर चलती रहती है । जिस प्रकार छिद्रयुक्त नौका से पानी को निकालने का कितना ही प्रयत्न किया जाय, नौका कभी खाली नहीं होती । अपितु जल से भरकर वह डूब ही जाती है । उसी प्रकार आत्मा में जब तक आनवरूपी द्वार खुले हुए हैं, नवीन कर्मों का आगमन निरन्तर जारी है, तब तक भवसागर से पार होना कठिन है । संवर के द्वारा उन छिद्रों को बन्द करके तथा तप के द्वारा नौका में स्थित जल को उलीचकर ही संसार - महासागर से पार हुआ जा सकता है। नौका में बचे हुए कर्मरूपी जल को निकालना अर्थात् आत्मा को कर्म से अलग करना ही निर्जरा है ।
जब कर्मों को नष्ट करने की इच्छा होगी तभी निर्जरा के द्वारा आत्मा का कर्मरूपी मल नष्ट होगा। जिस प्रकार नौका में बैठा हुआ व्यक्ति, नौका में जल के आगमन के छिद्रों को बन्द करके तथा उसमें स्थित जल को निकालकर ही पार पहुँच सकता है; उसी प्रकार साधक संवर के द्वारा कर्मरूपी जल के आगमन को रोककर तथा निर्जरा के द्वारा पूर्व संचित कर्मरूपी जल को निकालकर ही संसार-सागर को पार कर सकता है, अर्थात् मोक्षसुख को प्राप्त कर सकता है I
जीव का कर्मों से आंशिक रूप से मुक्त होने का प्रयास निर्जरा कहा जाता है। जब जीवात्मा आंशिकरूप से अर्थात् थोड़े-थोड़े रूप से कर्मरूपी मल को क्षीण करता हुआ, इस स्थिति में पहुँचता है कि उसका सम्पूर्ण कर्मरूपी मल समाप्त हो जाता है; तब उसे पूर्ण मुक्ति की प्राप्ति होती है और वह अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त शक्ति और अनन्त सुख रूप अनन्त चतुष्टय का अधिकारी होता है ।
निर्जरा के दो प्रकार
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निर्जरा दो प्रकार की कही गयी है। (१) अविपाक निर्जरा और (२) सविपाक निर्जरा । इन्हें क्रमशः औपक्रमिक निर्जरा तथा अनौपक्रमिक निर्जरा भी कहा जाता है ।
कर्मों का अपनी कालमर्यादा के परिपक्व होने पर अपना फल देकर नष्ट हो जाना, सविपाक निर्जरा है। जबकि पूर्वबद्ध कर्मों को उनकी कालमर्यादा के पूर्ण होने के पूर्व ही उदय में लाकर समाप्त कर देना, अविपाक निर्जरा है । सविपाक
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