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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
संवर के द्वारा नवीन कमों का आगमन तो रुक जाता है किन्तु पूर्वबद्ध कमों की सत्ता बनी रहती है। जब तक पूर्वबद्ध कर्म नष्ट नहीं होते तब तक मुक्ति नहीं मिलती। पूर्वबद्ध कमों को नष्ट करने की यह प्रक्रिया ही निर्जरा कही जाती है। यह बात निम्नांकित उदाहरण से स्पष्ट हो जाती है।
तालाब में जब तक पानी के आगमन के स्रोत खुले रहते हैं, पानी का आगमन नहीं रुकता। उन स्रोतों को बन्द कर देने पर नवीन पानी का आगमन तो रुक जाता है परन्तु जो पानी तालाब में भरा हुआ है, उसे निकाले बिना तालाब रिक्त नहीं होता। तालाब में पानी के आगमन के स्रोतों को बन्द कर देना संवर है। और उसमें भरे हुए जल को निकाल देना या सुखा देना निर्जरा है। निर्जरा के द्वारा साधक आत्मारूपी तालाब से कर्मरूपी जल को निकालकर बन्धन से मुक्त हो जाता है।
आगमों में कहा गया है कि आत्मा पर लगे हुए कर्ममल का आंशिक रूप से क्षय होना अथवा उसका आत्मप्रदेशों से अलग होना ही निर्जरा की साधना है। आगमों में तप को निर्जरा का साधन बताया गया है। तप रूपी अग्नि कर्मरूपी ईधन को जलाकर नष्ट कर देती है। तप से पूर्वबद्ध कमों का क्षय कर जीवात्मा सर्वदुःखों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। जिस प्रकार सूर्य की गर्मी से पूर्व में तालाब में भरा हुआ पानी सूख जाता है उसी प्रकार तप रूपी अग्नि से कर्मरूपी संचित जल सूख जाता है।
तप कमों को नष्ट करने की प्रक्रिया है। मिथ्यात्व, कषाय तथा राग-द्वेष का त्याग करके निष्काम भाव से तपःसाधना, आत्मविशुद्धि के लिये आवश्यक है। आसक्तिपूर्वक अंहकार से युक्त होकर भौतिक उपलब्धियों के लिये किया गया तप मात्र बाह्य तप है। उससे शरीर ही जीर्ण होता है, किन्तु मनोविकार नहीं जाते। वस्तुतः मनोविकारों को नष्ट करना ही तप का वास्तविक अर्थ है।
जिस प्रकार मक्खन से घी निकालने के लिये मक्खन को तपाना आवश्यक होता है। मक्खन को इसलिये तपाया जाता है कि उसमें जो छाछ आदि है, वह उष्णता के द्वारा नष्ट हो जाय और शुद्ध घी की प्राप्ति हो। उसी प्रकार जीवात्मा में पर के संयोग के निमित्त से जो विकारदशा प्राप्त होती है, उसे समाप्त करके शुद्ध आत्मस्वरूप को प्राप्त करने के लिये ही तप किया जाता है। तप रूपी अग्नि आत्मा के विकारों को नष्ट करती है।
निर्जरा का स्वरूप
जप, तप और ध्यान आदि के द्वारा पूर्वबद्ध कमों को नष्ट करना निर्जरा है। कषायों के कारण उत्पन्न दुःखों को समाप्त करना ही निर्जरा का उद्देश्य है। जीव अनादि काल से संसार रूपी समुद्र को पार करने का प्रयत्न
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