SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौन?, 'उपयोग' क्या है?, शुभोपयोग और अशुभोपयोग, पुण्यपाप चर्चा, चार वादों का निराकरण, स्वभाववाद का निरास-स्वतंत्रवाद स्वीकार्य, पुण्य-पाप में अंतर, पाप की हेयता, पाप कब होता है?, द्रव्यपाप और भावपाप, पाप के अठारह भेद, पाप का फल, पुण्यपाप कल्पना विषयक विद्वानों के विचार, पुण्य-पाप का अस्तित्व, पुण्य-पाप की कसौटी, अन्य स्थान पर पाप-पुण्य, विवेक यही पुण्य। पंचम अध्याय- आस्त्रव तत्त्व 'आस्रव' तत्त्व और आस्रवद्वार, आस्रव द्वार या बंध हेतु, 'पुण्यास्रव' और 'पापासव', 'द्रव्यास्रव' और 'भावास्रव', ईर्यापथ और सांपरायिक आस्रव, 'आस्रव' की संख्या, 'आस्रव के पाँच भेद, 'प्रमाद' के पाँच भेद, ‘कषाय' के भेद, 'योग' के भेद, 'आस्रव' के बीस भेद, 'आस्रव' के बयालीस भेद, प्रश्नव्याकरण और आस्रव द्वार, 'आस्रव और 'संवर' में भेद, 'आस्रव' और 'बंध' में भेद, बौद्ध साहित्य में 'आस्रव', 'आस्रव' और 'कर्म' भिन्न-भिन्न हैं, 'निरास्रवी' कैसे होना १५७-१९१ १९२-२४७ षष्ठ अध्याय- 'संवर' तत्त्व 'संवर' की व्याख्याएं, 'संवृत्त' आत्मा और 'आस्रव' आत्मा, संवर के संबंध में कुछ उदाहरण, मोक्ष मार्ग के लिए 'संवर' उत्तम गुणरत्न है, 'संवर' के दो भेद, 'संवर' के पांच भेद, सम्यक्त्व, सम्यक्त्व का लक्षण, सम्यक्त्व का महत्त्व, सम्यक्त्व के भेद, सम्यक्त्व के पांच अतिचार (दोष), 'संवर' के बीस भेद, 'संवर के सत्तावन भेद' तीन गुप्तियाँ, पाँच समितियाँ, समिति-गुप्ति का महत्त्व, दस धर्म, बौद्धों के दस धर्म, ख्रिश्चनों के दस धर्म, हिन्दुओं के दस धर्म, 'क्षमा' के विषय में विद्वानों के विचार, बारह अनुप्रेक्षाएं, द्वाविंश परिषहजय पांच चारित्र, ‘संवर' की महिमा, बौद्ध दर्शन में 'संवर'। सप्तम अध्याय- 'निर्जरा' तत्त्व 'निर्जरा' की व्याख्या, 'निर्जरा का स्वरूप, 'निर्जरा' के दो भेद. 'निर्जरा के बारह भेद, बाह्य और अभ्यंतर तप का समन्वय, विज्ञानयुग में 'ध्यान' का महत्त्व, 'तप' का माहात्म्य। अष्टम अध्याय- 'बंध' तत्त्व 'बंध' की व्याख्याएं, 'बंध' का स्वरूप, ‘बंध' के कारण, 'द्रव्यबंध' २४८-२८८ २८९-३३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy