________________
और 'भावबंध, 'बंध' के चार भेद, प्रकृतिबंध के (कर्म के) आठ भेद, 'घाती कर्म' और अघाती कर्म, आठ कर्मों का क्रम, 'कर्म' शब्द की व्युत्पत्तियाँ, 'कर्म' शब्द के विविध अर्थ, कर्म सिद्धान्त, कर्म संक्रमण, कर्मबंध प्रक्रिया, कर्म और अकर्म, शुभ और अशुभ कर्म, द्रव्य कर्म और भावकर्म, कर्मवाद, कर्म की अवस्थाएं, भाग्य परिवर्तन की प्रक्रिया करण, करण ज्ञान की उपयोगिता, कर्म चर्चा, बंध- मोक्ष चर्चा, बंध से मुक्ति ।
-
नवम अध्याय- मोक्ष तत्त्व
मोक्ष का स्वरूप, मोक्ष प्राप्ति के उपाय, मोक्ष का लक्षण, मोक्ष का विवेचन, विभिन्न दर्शनों में मोक्ष, मोक्ष- एक विश्लेषण, मोक्ष मीमांसा, द्रव्यमोक्ष और भावमोक्ष, कर्मक्षय का क्रम, कर्म की निर्जरा, कर्म का अंत, मोक्षों के नाम, सिद्धस्थान का स्वरूप, मोक्ष मार्ग के सम्बन्ध में मान्यताएं, मोक्ष मार्ग, सम्यक्त्व, सम्यक्त्व के दोष, सम्यक्त्व के आठ अंग, सम्यक् दर्शन का स्वरूप, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् ज्ञान के भेद, सम्यक् ज्ञान के दोष का स्वरूप, सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञान, सम्यक् चारित्र, चारित्र्य के दो भेद, सम्यग्दर्शन और सम्यक्, ज्ञान का पूर्वापर सम्बन्ध, मोक्ष मार्ग का समन्वय, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र का पूर्वापर सम्बन्ध, अन्य दर्शन के त्रिविध साधना मार्ग, त्रिविध साधना मार्ग और मुक्ति, सिद्ध किसे कहें ?, सिद्धों के भेद, सिद्ध आत्माओं के नाम, सिद्ध आत्मा का स्वरूप, सिद्धों को सुख, कर्म क्षय के बाद के कार्य, मोक्ष की सिद्धता ।
दशम अध्याय - उपसंहार
जीवतत्त्व, न्याय-वैशेषिक दर्शन का जीवतत्त्व, वेदान्त दर्शन का जीवतत्त्व, सांख्य- योग दर्शन का जीवतत्त्व, मीमांसा दर्शन का जीवतत्त्व, चार्वाक दर्शन का जीवतत्त्व, बौद्ध दर्शन का जीवतत्त्व, जैन दर्शन का जीवतत्त्व और अन्य दर्शनों में जैन दर्शन का वैशिष्ट्य, अजीवतत्त्व, पुण्यतत्त्व - पापतत्त्व, आस्रव तत्त्व और संवर तत्त्व, निर्जरा तत्त्व, बंध तत्त्व, मोक्ष तत्त्व, जैन दर्शन का मोक्ष तत्त्व और अन्य दर्शनों में जैन दर्शन का वैशिष्ट्य । चित्रों की जानकारी और चित्र
Jain Education International
( १७ )
For Private & Personal Use Only
३३६-४०६
४०७-४४०
४४१-४४४
www.jainelibrary.org