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________________ ११७ जैन दर्शन के नव तत्त्व कामदेव के समान सुन्दर बनता है । ये प्रशंसनीय बातें दुर्लभ होने पर भी पुण्योदय से प्राप्त होती हैं। पुण्य और धर्म के प्रभाव से असत्य वचन भी सत्य होता है और सारे सुख प्राप्त होते हैं। 30 असली पुण्यवान् कौन ? पुण्यशाली व्यक्ति को यद्यपि संपूर्ण शरीर, उत्तम कुल, आर्यक्षेत्र, परिपूर्ण पंचेन्द्रिय आदि प्राप्त होते हैं अर्थात् पुण्यवान के लिए कोई भी अपूर्णता नहीं दिखाई देती फिर भी कुछ लोग दरिद्र, मंदबुद्धि, कुपत्नी या कुपुत्र से युक्त क्यों दिखाई देते हैं? इसी प्रकार कुछ अच्छे लोग दुःखी दिखाई देते हैं, तब क्या यह मान लिया जाय कि वे लोग पुण्यहीन हैं? वस्तुस्थिति यह है कि प्रत्येक मनुष्य को यह सब अपने पूर्व- पुण्यों के कारण प्राप्त होता है। परंतु वर्तमान में उन्हें वास्तविक रूप से पुण्यवान् नहीं कहा जाता। जिसके पास पुण्य की अधिकता है या जो नये पुण्य की प्राप्ति अधिक मात्रा में करता है, वही वर्तमान में पुण्यवान् कहा जाता है । पुण्यवान् शब्द अधिक पुण्य के अस्तित्त्व का द्योतक है। उदाहरणार्थ जिसके पास अधिक धन है, उसे ही धनवान कहते हैं और उस धन का उपयोग जो व्यक्ति वर्तमान अवस्था में समाज के लिए करता है, वही व्यक्ति पुण्यवान् समझा जाता है 1 जिसके पास विपुल पुण्यसंचय है या जो बड़ी मात्रा में पुण्य का उपार्जन करता रहता है, ऐसे किसी भी व्यक्ति को सम्पत्ति, पत्नी, पुत्र होते हुए भी पुण्यवान् नहीं कहा जाता । कोई चोरी, लूटमार या बुरा कर्म करके भी सम्पत्ति कमा लेता है, तो उस पाप कर्म के द्वारा प्राप्त हुई सम्पत्ति के कारण, क्या हम उस धनवान् को पुण्यवान् कह सकते हैं ? किसी को पत्नी प्राप्त हुई और पुत्र भी प्राप्त हुआ, परन्तु यदि वे हमेशा बीमार और दुःखी रहते हों या वे आज्ञाकारी और विनम्र न हों तो क्या उस व्यक्ति को केवल पत्नी तथा पुत्र होने से ही पुण्यवान कहा जा सकता है ? आजकल बहुत से लोग बाहूय वैभव और ऐश्वर्य देखकर व्यक्ति को प्रायः पुण्यवान समझते हैं। जिस व्यक्ति के पास धन, सम्पत्ति नहीं है न्याय्य मार्ग से की हुई अपनी कमाई से जो संतुष्ट है, जिसके हृदय में दया है, जो अपनी शुभेच्छाएँ, सद्भावनाएँ और शुभकामनाएँ दुनिया के दुःखी लोगों के लिए व्यक्त करता है, दुःखी लोगों के आँसू पौंछता है और यथाशक्ति अपने शरीर से भी दूसरे की सहायता करता है, क्या ऐसा व्यक्ति पुण्यवान् नहीं है ? जरूर है । प्रश्न उठता है कि हजारों रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाले परन्तु कठोर मन वाले व्यक्ति पुण्यवान् हैं या दुःखी और दरिद्र व्यक्ति को देखकर द्रवीभूत होने वाले, बाहूय दृष्टि से गरीब परंतु अंतर्दृष्टि से अमीर व्यक्ति पुण्यवान हैं? इसका उत्तर यह कि जो मन से अमीर हैं, वे ही सच्चे अमीर हैं। जिनका जीवन सादा है, वे ही सच्चे पुण्यवान् हैं । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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