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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
उपयोग का अर्थ उपयोग आत्मा का लक्षण है इसीलिए उमास्वातिजी ने कहा है - 'उपयोगो लक्षणम्' (तत्त्वार्थसूत्र २/८)। आत्मा संसारी हो या सिद्ध हो, वह किसी भी अवस्था में उपयोगशून्य नहीं रहता। उपयोग आत्मा का त्रैकालिक गुण है। सामान्यतः उपयोग के दो भेद हैं - (१) ज्ञानोपयोग और (२) दर्शनोपयोग। इन्हीं को दूसरे शब्दों में क्रमशः साकारोपयोग और निराकारोपयोग कहते हैं। सामान्य पदार्थ का ज्ञान दर्शनोपयोग कहलाता है और विशेष पदार्थ का ज्ञान ज्ञानोपयोग कहलाता है। आत्मा का उपयोग स्वयंसिद्ध होता है। मोह का उदय उसे मलिन करता रहता
ज्ञानोपयोग के आठ भेद हैं और दर्शनोपयोग के चार भेद हैं। इस तरह उपयोग के बारह भेद हैं।२
उपयोग का विस्तृत वर्णन जीव तत्त्व में किया जा चुका है। यहाँ शुभोपयोग और अशुभोपयोग के संदर्भ के कारण उपयोग पर विचार किया जा रहा
शुभोपयोग और अशुभोपभोग
जीवद्रव्य चैतन्यस्वरूप है। वह जानना और देखना इस दृष्टि से दो प्रकार का है। जानना अर्थात् ज्ञान और देखना अर्थात् दर्शन। आत्मा का चैतन्य-परिणाम निश्चय से शुभरूप और अशुभरूप है। ज्ञान तथा दर्शनरूप उपयोगों के शुद्ध और अशुद्ध इस प्रकार से दो अन्य भेद भी हैं।
जो वीतराग उपयोग है, वह शुद्धोपयोग है और जो सराग उपयोग है, वह अशुद्धोपयोग है। अशुद्धोपयोग भी विशुद्ध (मंदकषाय) और संक्लेश (तीव्रकषाय) भेदों से दो प्रकार का है। विशुद्ध रूप शुभोपयोग है और संक्लेश रूप अशुभोपयोग
आचार्य उमास्वाति ने कहा है कि शुभोपयोग पुण्यबन्ध का हेतु है और अशुभोपयोग पापबन्ध का हेतु है। श्रीविद्यानन्दजी ने शुभोपयोग और अशुभोपयोग की व्याख्या इस प्रकार की है - सम्यग्दर्शन से युक्त योग शुभ और शुद्ध है तथा मिथ्यादर्शन से युक्त योग अशुभ और अशुद्ध है।
तत्त्व पर श्रद्धा सम्यग्दर्शन है। तात्पर्य यह है कि वस्तु का यथार्थ ग्रहण सम्यग्दर्शन है। जिस प्रकार घर में दरवाजे, तालाब में झरने और नौका में छिद्र होते हैं, उसी तरह जीव के शुभ और अशुभ योग होते हैं। जिस प्रकार दरवाजे से घर में प्रवेश किया जाता है, उसी तरह योग से कर्मपुद्गल (कर्मसमूह) आत्म-प्रदेश में आते हैं। आम्नव करते हैं।
जिस प्रकार जल का आगमन झरने के द्वार से होता है, उसी प्रकार योग द्वारा आत्मा में कर्म आते हैं इसलिए योग को आम्नव कहते हैं। जिस प्रकार बहकर आयी हुई धूल गीले वस्त्र के चारों और चिपकती है, उसी प्रकार योग द्वारा लाये गये कर्मरूपी धूलिकणों को कषायरूपी पानी से गीली हुई आत्मा चारों ओर से
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