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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
है, उसी प्रकार सोने की बेड़ी भी करती है। इस प्रकार किया हुआ शुभ या अशुभ कर्म जीव को पुण्य या पाप कर्म से बाँधता है। मोक्ष का वास्तविक कारण शुद्धोपयोग है। उसे जो व्यक्ति नहीं जानता, वह अज्ञानवश पुण्य को मोक्ष का कारण समझकर पुण्य की इच्छा रखता है। वस्तुतः वह संसार-भ्रमण का कारण
__बंधन सोने का हो या लोहे का, वह अन्ततः दुःख देनेवाला ही होता है। अति मूल्यवान् लकड़ी के प्रहार से भी वेदना ही होती है। इसलिए जैन-धर्म का कहना है कि अध्यात्म-साधना का उद्देश्य पुण्य नहीं है और पुण्य-प्राप्ति के लिए की गई साधना आत्मसाधना नहीं है। मोक्षप्राप्ति के लिए तो पुण्य और पाप दोनों ही त्याज्य हैं।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से पाप से पुण्य श्रेष्ट है। क्योंकि पाप के कारण नरक- प्राप्ति आदि तीव्र वेदनाएँ प्राप्त होती हैं। दुनिया में निन्दा, अपयश और कष्ट सहन करने पड़ते हैं। परंतु पुण्य के कारण स्वर्गीय और रमणीय सुख की उपलब्धि होती है। इस दुनिया में यश आदि भी मिलता है। जिस प्रकार विश्राम के लिए तीव्र धूप में बैठने की अपेक्षा वृक्ष की शीतल छाया में बैठना अधिक श्रेयस्कर तथा सुखदायी होता है, उसी प्रकार जीवन में पाप की अपेक्षा पुण्य का आश्रय लेना अधिक श्रेयस्कर है। पुण्य जहाज के समान है। जब तक हमारे सामने संसाररूपी नदी या सागर है, तब तक पुण्यरूपी जहाज की जरूरत है। संसाररूपी नदी को पार कर लेने पर पुण्य को छोड़ना पड़ता है।'
पुण्य-पाप की व्याख्याएँ जो आत्मा को प्रसन्न करता है, वह पुण्य है अथवा जिसके द्वारा आत्मा सुख-शांति का अनुभव करता है, वह सद्वेदनीय आदि पुण्य है (जिसके उदय से देव आदि चार गतियों में शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त होता है, उसे सत्-वेदनीय कहते हैं)।
पुण्य के विपरीत पाप है जो आत्मा में शुभ परिणाम नहीं होने देता। वह असत् देवनीय आदि पाप है (जिसके उदय से नरक आदि गतियों में अनेक प्रकार के दुःख प्राप्त होते है, उसे असत्-वेदनीय कहते हैं)।
जो पुद्गलकर्म शुभ है वह पुण्य और जो पुद्गलकर्म अशुभ है वह पाप है, ऐसा सर्वज्ञों ने कहा है।
जो शुभ प्रवृत्ति आत्मा को सुख देती है, वह पुण्य है और जो अशुभ प्रवृत्ति आत्मा को दुःख देती है, वह पाप है।
पापी विकार मनुष्य की उन्नति में बाधक होते हैं। पाप मनुष्य को सन्मार्ग पर नहीं जाने देता तथा मनुष्य का विकास नहीं होने देता। मनुष्य को पाप से अथवा दुष्कर्म से हमेशा दूर रहना चाहिए। सचमुच पाप का मार्ग अंधकार से भरा
हुआ है।
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