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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन चौबीसवें अधिकार में योगतप-विधि उल्लेखित है। पच्चीसवें अधिकार में (योग) काल, खमासमण की विधि वर्णित है। छब्बीसवें अधिकार में सर्वयोगियों के कल्प्याकल्प्य विधि का वर्णन है। सत्ताईसवें अधिकार में एषणा - उपहनन का उल्लेख किया गया है। अट्ठाईसवें अधिकार में अनध्याय की विधि बताई गई है। उनतीसवें अधिकार में कालग्रहण की विधि का वर्णन है । तीसवें अधिकार में वसति एवं काल के प्रवेदन की विधि बताई गई है। एकतीसवें अधिकार में स्वाध्याय- प्रस्थापन की विधि कही गई है। बत्तीसवें अधिकार में कालमडंल के प्रतिलेखन की विधि दर्शित की गई तीसवें अधिकार में वाचनाचार्य - पदस्थापना की विधि बताई गई है। चौंतीसवें अधिकार में वाचनाचार्य - विद्यायंत्रलेखन की विधि का उल्लेख है। पैंतीसवें अधिकार में आचार्यपद-प्रतिष्ठा की विधि प्ररूपित है। छत्तीसवें अधिकार में उपाध्यायपद-प्रतिष्ठा की विधि वर्णित है। सैंतीसवें अधिकार में महत्तरा - पदस्थापना की विधि वर्णित है। प्रसंगानुसार इस ग्रन्थ में वर्धमानविद्या, संस्कृत के छः श्लोकों का चैत्यवंदन, मिथ्यात्व के हेतुओं का निरूपण करने वाली आठ गाथाएँ, उपधानविधि-विषयक पैंतालीस गाथाएँ, तप के बारे में पच्चीस गाथाओं का कुलक, संस्कृत के छत्तीस श्लोकों में रोहिणी की कथा, तेंतीस आगमों के नाम, आदि बातें भी आती हैं। 75 सामाचारी - शतक इस कृति की रचना रुद्रपल्लीगच्छीय सोमसुन्दर गणी (१४१५ - २१) ने की है। इस ग्रन्थ के सौ अधिकार हैं, जो पाँच प्रकाशों में विभक्त हैं। यह ग्रन्थ मुख्यरूप से गद्य में है। आचारदिनकर में वर्णित कुछ विषयों की चर्चा हमें इस ग्रन्थ में भी उपलब्ध होती है, यथा- प्रतिक्रमण की विधि, योगोपधान की विधि, पौषधग्रहण करने की विधि, प्रव्रज्या - विधि, उपधान - विधि, आदि । इस कृति का उल्लेख हमें जैन-साहित्य का बृहत् इतिहास (भाग-४) में मिलता है। Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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