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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
बारहवें द्वार में प्रतिक्रमण करने की विधि अंकित है। तेरहवें द्वार में आचार्य-पदस्थापन की विधि उल्लेखित है। चौदहवें द्वार में उपाध्याय-पदस्थापन की विधि वर्णित है। पन्द्रहवें द्वार में महत्तरापद पर स्थापित करने की विधि बताई गई है। सोलहवें द्वार में गणानुज्ञा की विधि दी गई है। सत्रहवें द्वार में योग की विधि का वर्णन है। अठारहवें द्वार में अचित्तसंयत (मृतदेह) परिष्ठापना-विधि का उल्लेख है।
उन्नीसवें द्वार में पौषधव्रत ग्रहण करने की विधि एवं सम्यक्त्वादि की महिमा का प्रतिपादन किया गया है।
बीसवें द्वार में जिनबिंब की प्रतिष्ठा-विधि, ध्वजारोपण की विधि एवं कलशारोपण की विधि निरूपित है। सामाचारी-प्रकरण -
सामाचारी-प्रकरण नामक यह कृति प्राकृत एवं संस्कृत मिश्रित गद्य में गुम्फित है। यह रचना किसी अज्ञात प्राचीन आचार्य द्वारा निर्मित है। यह ग्रन्थ ११६७ श्लोक-परिमाण है।
___ इस ग्रन्थ के सम्पूर्ण विषय को २१ द्वारों में विभाजित किया गया है। प्रस्तुत कृति के २१ द्वारों का विषयानुक्रम यह है
पहला द्वार- सम्यक्त्व-व्रत की आरोपण-विधि से सम्बन्धित है। दूसरा द्वार- देशविरति-व्रत की आरोपण-विधि की विवेचना करता है। तीसरा द्वार- दर्शनादि चार प्रतिमाओं को ग्रहण करने की विधि से युक्त
चौथा द्वार- तप-स्वरूप की विधि का विवरण प्रस्तुत करता है। पांचवाँ द्वार- प्रतिक्रमणादि की विधि का प्रतिपादन करता है। छठवाँ द्वार- पौषध ग्रहण करने की विधि का निरूपण करता है। सातवाँ द्वार- प्रव्रज्या ग्रहण करने की विधि का विवेचन करता है। आठवाँ द्वार- उपस्थापना की विधि से युक्त है।
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