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________________ 889 साध्वी मोक्षरत्ना श्री नवाँ द्वार- काल ग्रहण करने की विधि की विवेचना से समन्वित है। दसवाँ द्वार - योगवहन की तप - विधि का वर्णन करता है। ग्यारहवाँ द्वार- आचार्यपद की स्थापनाविधि का उल्लेख करता है। बारहवाँ द्वार- उपाध्यायपद की स्थापनाविधि से सम्बन्धित है। तेरहवाँ द्वार - प्रवर्त्तकपद की स्थापनाविधि की प्रतिपादना करता है । चौदहवाँ द्वार - स्थविरपद की स्थापनाविधि की चर्चा करता है । पन्द्रहवाँ द्वार- गणावच्छेदकपद की स्थापनाविधि का प्रतिपादन करता है। सोलहवाँ द्वार - महत्तरापद की स्थापनाविधि से समन्वित है। सत्रहवाँ द्वार- प्रवर्तिनीपद की स्थापनाविधि को प्रस्तुत करता है । अठारहवाँ द्वार - वाचनाचार्यपद की स्थापनाविधि का निरूपण करता है । उन्नीसवाँ द्वार- अंतिम समय की आराधनाविधि को प्रकट करता है। बीसवाँ द्वार- अचित्तसंयत - महापरिष्ठापना की विधि का उल्लेख करता है । इक्कीसवाँ द्वार - जिनबिम्ब की प्रतिष्ठाविधि को निर्दिष्ट करता है । ग्रन्थ- समाप्ति के पश्चात् परिशिष्ट के रूप में योगविधि से सम्बन्धित यंत्रादि का भी उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही नीवि संबंधी कल्प्याकल्प्य - विधि, योगविधान में प्रयुक्त होने वाली स्तुतियाँ, तीस नीवियाता, अस्वाध्याय की विधि, आदि की चर्चा भी की गई है। यह कृति अप्रकाशित है। सामाचारी-संग्रह 68 सामाचारी-संग्रह नामक यह ग्रन्थ श्रीकुलप्रभसूरि के शिष्य नरेश्वरसूरि विरचित है। यह ग्रन्थ मुख्यतः संस्कृत भाषा में निबद्ध है, किन्तु कुछ सामग्री प्राकृत भाषा में भी निबद्ध है। यह कृति वल्लभ नामक स्वोपज्ञटीका से युक्त है । यह नौ परिच्छेदों में विभक्त है। इस ग्रन्थ का श्लोक - परिमाण ४००० है । इस ग्रन्थ में निर्दिष्ट ५० द्वारों के नाम निम्नांकित हैं पहला द्वार जिनमन्दिर के योग्य भूमि का शुभाशुभत्व | - दूसरा द्वार - कूर्मप्रतिष्ठा-विधि। तीसरा द्वार Jain Education International - जिनभवन की निर्माण-विधि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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