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________________ 66 सुबोधा-सामाचारी सुबोधा - सामाचारी' नामक यह कृति जैन - महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में निबद्ध है। यह कृति मुख्यतया गद्य में है। इस ग्रन्थ के रचनाकार श्रीचन्द्रसूरि शीलप्रभसूरि के प्रशिष्य धनेश्वरसूरि के शिष्य हैं। इनके द्वारा रचित मुनिसुव्रतस्वामी - चरित्र, आदि कृतियों के भी उल्लेख मिलते हैं। प्रस्तुत कृति का ग्रन्थ- परिमाण १३८६ श्लोक है। इस कृति का रचनाकाल लगभग १३वीं शती का पूर्वार्द्ध है। इस ग्रन्थ को रचनाकार ने निम्न बीस द्वारों में विभाजित किया है पहले द्वार में सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करने की विधि वर्णित है। दूसरे द्वार में परिग्रह-परिमाण - विधि एवं षण्मासिक-सामायिक ग्रहण करने की विधि का निर्देश किया गया है। तीसरे द्वार में दर्शनादि चार प्रतिमाओं को स्वीकार करने की विधि निर्दिष्ट की गई है। १०३ चौथे द्वार में उपधान- तप की विधि एवं उपधान- प्रकरण का उल्लेख किया गया है। पांचवें द्वार में मालारोपण ( उपधान - तपवाही द्वारा माला पहनने एवं पहनाने की विधि वर्णित है। गई है। साध्वी मोक्षरत्ना श्री छठवें द्वार में इन्द्रियजयादि विविध प्रकार की तप-विधि का निरूपण किया गया है। सातवें द्वार में साधु द्वारा करने योग्य अंतिम आराधना-विधि वर्णन है। १०३ नौवें द्वार में प्रव्रज्या ग्रहण करने की विधि निर्दिष्ट है। दसवें द्वार में उपस्थापना की विधि प्रज्ञप्त है। ग्यारहवें द्वार में लूंचन करने की विधि निरूपित है। Jain Education International आठवें द्वार में श्रावक द्वारा की जाने योग्य अन्तिम आराधना प्रस्तुत For Private & Personal Use Only सुबोधा सामाचारी, चन्द्रसूरिकृत, श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई, जैन पुस्तकोद्वार, बॉम्बे, वि.स.- १६८०. -विधि का की www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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