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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
१३. क्रियाकोश
इस कति' के रचनाकार कविवर किशनसिंह हैं। यह श्रावकाचार का अद्वितीय ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में प्रायः श्रावक हेतु आचरणीय विषयों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से कुछ विषयों का उल्लेख इस शोधप्रबन्ध हेतु भी उपयोगी रहा है, जैसे- श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ, समाधिमरण की विधि, श्रावक के बारह व्रत, कनकावली, रत्नावली, सिंह-निष्क्रीडित, आदि विविध तपों के उल्लेख। इस कृति का रचनाकाल वि.स.-१७८४ है। श्वेताम्बर-परम्परा का संस्कार एवं विधिविधान सम्बन्धी साहित्य(i) वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के पूर्व का साहित्य १. उत्तराध्ययनसूत्र -
उत्तराध्ययनसूत्र जैन आगमों का प्रथम मूलसूत्र माना जाता है। इसका नाम उत्तराध्ययन क्यों पड़ा? यह विवादास्पद है। इस ग्रन्थ में ३६ अध्याय हैं। इस ग्रन्थ के २६वें सामाचारी नामक अध्ययन में हमें मुनि की दिन एवं रात्रि की चर्या का उल्लेख मिलता है तथा अन्तिम ३६वें अध्याय में संलेखना-विधि-विधान की चर्चा मुख्य रूप से मिलती है। आचारदिनकर में मुनि की दिन-रात की चर्या का जो उल्लेख मिलता है, उस हेतु यह आधारभूत आगम ग्रन्थ है। २. दशाश्रुतस्कन्ध -
दशाश्रुतस्कन्ध-सूत्र का दूसरा नाम आचारदशा भी है। स्थानांग-सूत्र के दसवें स्थान में इसका आचारदशा के नाम से उल्लेख करते हुए इसमें प्रतिपादित दस अध्ययनों-उद्देश्यों का नाम उल्लेख किया गया है। इस सूत्र में वर्णित कुछ विषयों, यथा-बीस असमाधि-स्थानों, इक्कीस शबलदोष, तेंतीस आशातनाएँ, उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं, भिक्षु की बारह प्रतिमाओं, मोहनीय-कर्मबन्ध-स्थानों की चर्चा प्रसंगानुसार आचारदिनकर में भी मिलती है। इस रूप में यह इन विषयों का आधारभूत आगमग्रन्थ माना जा सकता है।
" क्रियाकोश, अनु.: पं. पन्नालाल जैन, श्रीमद् राजचंद्र आश्रम स्टेशन, बोरीया, प्रथम संस्करण १९८५ "उत्तराध्ययनसूत्र, मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, द्वितीय संस्करण १६६१. ६ दशाश्रुतस्कन्ध, मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रथम संस्करण १६६२.
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