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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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की १२वीं शती है। इस कृति का उल्लेख भी हमें जैन-साहित्य का बृहत् इतिहास (भाग-४) में मिलता है। १०. प्रतिष्ठा-सारोद्धार
प्रतिष्ठा-सारोद्धार' नामक इस ग्रन्थ की रचना पण्डित आशाधरजी ने संस्कृत-भाषा में (पद्यात्मक शैली में) की है। इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में यह उल्लेख है कि वसुनंदि आचार्यकृत "प्रतिष्ठा सार संग्रह" के विषय का उद्धार करने के लिए विस्तार के साथ प्रतिष्ठासारोद्धार नामक यह ग्रन्थ रचा गया है। इस कृति का अपर नाम “जिनयज्ञकल्प" है। इस ग्रन्थ में दिगम्बर-परम्परा के अनुसार ही प्रतिष्ठा-विधि का विवेचन हुआ है। इस कृति का रचनाकाल विक्रम की १३वीं शती है। आचारदिनकर में वर्णित प्रतिष्ठा-विधि से तुलना करने में यह ग्रन्थ भी अत्यन्त उपयोगी रहा है। ११. प्रतिष्ठा-पाठ
इस कृति के रचनाकार जयसेनाचार्य हैं। यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में निबद्ध है। इस ग्रन्थ में दिगम्बर-परम्परा के अनुसार जिनबिम्ब, आदि की प्रतिष्ठा-विधि का उल्लेख किया गया है। यद्यपि अन्तिम प्रशस्ति में लेखक ने अपने को कुन्दकुन्द का अग्रशिष्य उल्लेखित किया है, किन्तु ये कुन्दकुन्द के साक्षात् शिष्य न होकर परम्परा-शिष्य ही हो सकते हैं। कुन्दकुन्द के समयसार की तात्पर्यवृत्ति के टीकाकार भी जयसेन हैं। उनका काल तेरहवीं शती के लगभग है। सम्भावना यही है कि प्रतिष्ठापाठ के रचनाकार जयसेन भी लगभग इसी काल के प्रतीत होते हैं। १२. सागार एवं अनगार धर्मामृत
इस कृति के कर्ता पं. आशाधरजी हैं। यह ग्रन्थ दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग का नाम अनगार-धर्मामृत है और दूसरे भाग का नाम सागार-धर्मामृत है। इन दोनों विभागों में दिगम्बर-परम्परा के अनुसार क्रमशः साधु एवं श्रावकों के आचारधर्म का निरूपण किया गया है। इस कृति का रचनाकाल विक्रम की तेरहवीं शती है।
६५ प्रतिष्ठासारोद्धार, पं. आशाधरजी, पं. मनोहरलाल शास्त्री, श्री जैन ग्रंथ उद्धारक कार्यालय, बॉम्बे, प्रथम
संस्करण १६७३ ८ प्रतिष्ठापाठ, जयसेनाचार्य विरचित, सेठ हीरालाल नेमचंद डोशी, मंगलवार पेठ, शोलापुर वी.स. २४५० “धर्मामृतअनगार, अनु.- पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, प्रथम संस्करण १६७७
सागारधर्मामृत, अनु.- आर्यिका सुपार्श्वमती, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत परिषद, तृतीय संस्करण १६६५
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