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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 57 ३. आवश्यकसूत्र - आवश्यकसूत्र आगमों में दूसरा मूलसूत्र माना जाता है। इस ग्रन्थ में नित्यकर्म के प्रतिपादक आवश्यक क्रियानुष्ठानरूप कर्तव्यों का उल्लेख है, इसलिए इसे आवश्यक कहा गया है। इस सूत्र में छः अध्याय हैं- (१)सामायिक (२)चतुर्विंशतिस्तव (३)वंदन (४)प्रतिक्रमण (५)कायोत्सर्ग एवं (६)प्रत्याख्यान। आचारदिनकर में वर्णित आवश्यकविधि का प्रकरण प्रायः इसी ग्रन्थ पर आधारित है। ४. दशवैकालिकसूत्र - दशवैकालिकसूत्र' जैन-आगमों का तीसरा मूलसूत्र है। इस कृति के रचयिता शय्यंभवसूरि हैं। यह ग्रन्थ दस अध्यायों में विभाजित है। इसके अन्त में दो चूलिकाएँ हैं, जो शय्यंभवसूरि द्वारा रचित नहीं है। इस सम्पूर्ण ग्रन्थ में मुनि-आचार का उल्लेख किया गया है। आचारदिनकर में मुनि-आचार सम्बन्धी विधि-विधान के लिए यह ग्रन्थ आधारभूत रहा है। ५. ओघनियुक्ति ओघनियुक्ति नामक यह ग्रन्थ चतुर्थ मूलसूत्र के रूप में माना गया है। इसमें साधुचर्या सम्बन्धी नियम तथा आचार-विचार-विषयक कई प्रकार के विधि-विधान प्रतिपादित किए गए हैं। इसके कर्ता आचार्य भद्रबाहस्वामी हैं, इस नियुक्ति पर द्रोणाचार्य ने वृत्ति लिखी है, इसमें ८११ प्राकृत गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ में प्रतिलेखनाद्वार, पिण्डद्वार, उपधि-निरूपण, अनायतन-वर्जन, प्रतिसेवनाद्वार, आलोचनाद्वार और विशुद्धिद्वार, इत्यादि विषयों का निरूपण हुआ है। यह कृति वि.स. तीसरी से छठवीं शती के मध्य कभी निर्मित हुई होगी। यद्यपि परम्परागत अवधारणा यह है कि नियुक्तियाँ आचार्य भद्रबाहु प्रथम की रचना है, किन्तु उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह अवधारणा समुचित नहीं है। डॉ. सागरमल जैन का मानना है कि नियुक्तियाँ भद्रबाहु (प्रथम) की रचना न होकर तीसरी-चौथी शती में हुए आर्यभद्र की कृतियाँ हैं। अन्य कुछ विद्वान् नियुक्तियों के रचनाकार के रूप में भद्रबाहु (द्वितीय), जो वराहमिहिर के भाई थे, को मानते हैं। वास्तविकता केवलिगम्य है। इसमें साध्वाचार के अतिरिक्त अन्य कोई विधि-विधान नहीं है। आवश्यकसूत्र मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, द्वितीय संस्करण १६६४. दशवैकालिकसूत्र, नथमलमुनि, जैन विश्व भारती, लांडन, द्वितीय संस्करण १६७४. ६ ओधनियुक्ति, सं.: विजयजिनेन्द्र सूरीश्वर, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखाबावल शांतिपुरी (सौराष्ट्र). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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