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________________ 48 साध्वी मोक्षरला श्री ३६. बलि-कर्म संस्कार का प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि उसे हमेशा सुख की ही प्राप्ति हो, कभी दुःख की प्राप्ति न हो। इसके लिए वह अनेक देवी-देवताओं की पूजा करता है, उन्हें फल, नैवेद्य आदि चढ़ाकर प्रसन्न करता है, जिससे की हमेशा उसका मंगल ही हो तथा उसे किसी प्रकार का कोई कष्ट न हो- इस प्रकार बलिकर्म-संस्कार का प्रयोजन देवी-देवताओं को संतुष्ट करके मंगल की प्राप्ति करना है। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में भी यह विधान इसी उद्देश्य से किया जाता है। ३७. प्रायश्चित्त-विधि इस संस्कार का प्रयोजन अन्तःकरण की शुद्धि करना है। इस संसार में आने के बाद जीव जाने या अनजाने में अनेक ऐसे कार्य कर जाता है, जो कर्म-बन्ध के हेतु बन जाते हैं, इस संस्कार के माध्यम से उन कर्मों को क्षय करने का प्रयत्न किया जाता है। कर्मों का क्षय किए बिना जीव उनके दारुण परिणाम से नहीं बच सकता है, अतः कर्मों का क्षय करने के उद्देश्य से तथा अपने अन्तःकरण की शुद्धि हेतु यह विधि की जाती है। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में भी यह क्रिया आन्तरिक-शुद्धि हेतु की जाती है। ३८. आवश्यक-विधि- . आवश्यक-विधि का प्रयोजन साधु एवं श्रावकों द्वारा अवश्य करणीय कृत्यों का वर्णन करना है। प्रत्येक साधु एवं व्रतधारी श्रावक के लिए प्रतिदिन षडावश्यक की क्रिया करना आवश्यक है, वे षडावश्यक ये हैं-(१) सामायिक (२) चतुर्विंशतिस्तव (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कायोत्सर्ग एवं (६) प्रत्याख्यान। आगम-सूत्रों में इन षडावश्यकों का उल्लेख मिलता है। ये षडावश्यक किस विधि से किए जाएं- उसकी विधि का प्रतिपादन इस प्रकरण में किया गया है। दिगम्बर-परम्परा में भी आवश्यक-विधि का यही प्रयोजन है। वैदिक-परम्परा में हमें इस प्रकार की विधि का उल्लेख नहीं मिलता है। ३६. तप-विधि इस विधि का प्रयोजन कर्मों की निर्जरा करने में सहायभूत छ: प्रकार के बाह्य-तपों का निरूपण करना है। कर्मों की निर्जरा करने हेतु तप एक माध्यम ७३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, पृ.-३६३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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