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________________ वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 327 किन्तु चैत्यप्रतिष्ठा के समय सुरमा एवं शहद से रसांजन बनाने की क्रिया नहीं होती है। फिर लग्नबेला के आने पर जिनप्रतिष्ठामंत्र एवं वास्तुदेवता का मंत्र बोलकर वासक्षेप पूर्वक चैत्य की देहली, तोरण एवं शिखर की प्रतिष्ठा की जाती हैं तथा पुनः बिम्ब की बृहत्स्नात्रविधि से पूजा करना, चैत्य के ऊपर से वस्त्र उतारकर महोत्सव करना, नंद्यावर्त्त का विसर्जन करना आदि सब क्रियाएँ जिनबिम्ब-प्रतिष्ठा की भाँति ही की जाती है। दिगम्बर-परम्परा में हमें चैत्य-प्रतिष्ठा की विधि का उल्लेख नहीं मिला। वैदिक-परम्परा के अग्निपुराण में यद्यपि प्रासाद-प्रतिष्ठा का उल्लेख अवश्य मिलता है६६२, किन्तु आचारदिनकर में निर्दिष्ट कार्यों का हमें वहाँ कोई उल्लेख नहीं मिला। प्रतिष्ठामयूख के प्रासादाधिवासन प्रकरण में हमें उपर्युक्त कृत्यों में से कुछ कृत्यों की चर्चा मिलती है। जैसे- प्रासाद का अभिषेक करना, प्रासाद को सूत्र से वेष्टित करना, पताका आदि लगाकर उसकी पूजा करना इत्यादि। ५६२ वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में वर्णित प्रासाद-अधिवासना सम्बन्धी कुछ विधानों का जैसे- ८१ कलशों की स्थापना करना ५०, प्रासाद को लीपना, १६५ विष्णुगायत्री को पढ़ते हुए चार गायों को दुहना, उस दूध में विष्णुगायत्रीमंत्र से चरु को पकाकर स्थाप्य देवता को निवेदन करके बारह ब्राह्मणों को भोजन कराकर 'विष्णु प्रीयताम'- ऐसा कहना, याजमान आचार्यों को गायों का दान देना,६६६ इत्यादि उल्लेख हमें आचारदिनकर में नहीं मिलते है। जिनचैत्य-प्रतिष्ठा की विधि के पश्चात् आचारदिनकर में कलशप्रतिष्ठा, ध्वज प्रतिष्ठा, राजध्वज की प्रतिष्ठा, जिनबिम्ब के परिकर की प्रतिष्ठा, जलपट्ट (फलक) की प्रतिष्ठा, तोरण की प्रतिष्ठा, प्रासाददेवी, संप्रदायदेवी- कुलदेवी की प्रतिष्ठा, क्षेत्रपाल की प्रतिष्ठा, गणपति आदि की प्रतिष्ठा, माणुधन आदि कुल देवों की प्रतिष्ठा, सिद्धमूर्ति की प्रतिष्ठा, देवतावसर समवसरण की प्रतिष्ठा, मंत्रपट्ट की प्रतिष्ठा, पितमूर्ति की प्रतिष्ठा, यति (साधु-साध्वी) मूर्ति की या स्तूप की प्रतिष्ठा, नवग्रहों की प्रतिष्ठा, चतुर्निकाय देवों की प्रतिष्ठा, गृह आदि की प्रतिष्ठा, जलाशयों अग्निपुराण, सं.- श्री राम शर्मा, प्रकरण-१४६, पृ. २५५, संस्कृति संस्थान, बरेली, १९८७. ६६५ प्रतिष्ठामयूख,अनु.- डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ.- २०५-६, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करणः १९६६. ६६५ प्रतिष्ठामयूख,अनु.- डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ.- २०१२, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करणः १६६६. ६६५ प्रतिष्ठामयूख,अनु.- डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ.- २०३, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करण : १६६६. ६६६ प्रतिष्ठामयूख, अनु.-डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ.- २०६-७, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करणः १९६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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