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________________ 326 साध्वी मोक्षरत्ना श्री वैदिक-परम्परा की मान्यताओं में मतभेद होने के कारण इनके मंत्रों आदि में जो अन्तर हैं, वह स्वाभाविक है। आचारदिनकर के अनुसार९५६ चैत्य की स्थापना, नवग्रहों की स्थापना और धातु, काष्ठ, पाषाण एवं हाथीदाँत से निर्मित जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही है, किन्तु लेप्यमय, अर्थात् मिट्टी आदि से बनी प्रतिमा की प्रतिष्ठा में इतना विशेष है कि लेप्यमय प्रतिमा पर स्नात्रविधि न करके उसके समक्ष स्थित दर्पण में जो प्रतिबिंब गिरता है, उसकी स्नात्रविधि करनी चाहिए, शेष सर्वविधि पूर्ववत् ही की जाती है। गृह चैत्य में पूजनीय बिम्बों की जहाँ प्रतिष्ठा की गई हो, चाहे उन्हें उसी गृह या नगर में प्रतिष्ठित करना हो, तो भी पूर्व प्रतिष्ठित बिम्बों की कंकणमोचन-विधि की जाती है। यदि बिम्ब को अन्य किसी गृह में, अन्य गाँव में या अन्य देश में स्थापित करना हो तो वहाँ ले जाकर प्रवेश महोत्सवपूर्वक कंकणमोचन करना चाहिए।६६० दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में हमें इस प्रकार के कंकणमोचन का उल्लेख देखने को नहीं मिला। दिगम्बर-परम्परा के प्रतिष्ठासारोद्धार में इतना उल्लेख अवश्य मिलता है कि चित्राम आदि की अभिषेक-विधि उसके दर्पण में प्रतिबिंबित बिम्ब की करनी चाहिए। वैदिक-परम्परा के प्रतिष्ठा-मयूख में भी कहा गया है कि- 'लेपयुक्त मूर्ति, भित्ति तथा पट आदि में निर्मित मूर्ति के स्नान आदि कृत्यों को दर्पण में करना चाहिए और उनका पूजन जल से रहित पुष्पों से करना चाहिए।' आचारदिनकर में चैत्यप्रतिष्ठा की विधि का भी उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि के अनुसार बिम्ब प्रतिष्ठा के शुभलग्न में, अर्थात् उस लग्न में जिसमें बिम्ब की प्रतिष्ठा हुई हो, अथवा अन्य दिन, मास, पक्ष या वर्ष व्यतीत होने पर उसी लग्न में संघ को एकत्रित करना चाहिए।१५ चैत्य की चारों दिशाओं में चार वेदिका बनाकर चौबीस तन्तु सूत्रों से अन्दर की तरफ एवं बाहर की तरफ लपेट कर शान्तिमंत्र द्वारा चैत्य की रक्षा करनी चाहिए। चैत्य की प्रतिष्ठा में वे ही सब क्रियाएँ होती हैं, जो बिम्ब-प्रतिष्ठा के समय की जाती है। यथा- स्नात्रकारों एवं औषधि-पेषण का कार्य करने वाली स्त्रियों को आमंत्रित करना, बृहत्स्नात्रविधि से पूजा करना, सात प्रकार के धान्य चढ़ाना तथा रक्षाबन्धन करना, रौद्रदृष्टि पूर्वक दोनों मध्य अंगलियों को खड़ी करके बाएँ हाथ में स्थित जल से चैत्य को अभिसिंचित करना, चैत्य के ऊपर वस्त्र ढकना, नंद्यावर्त्त-पूजन करना, इत्यादि; ५६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेंतीसवाँ, पृ.-२०१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ° आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेंतीसवाँ, पृ.-२०१,निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ६६" आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेंतीसवाँ, पृ.-२०१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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