SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन सकलीकरण करना, दस दिक्पालों का आह्वान एवं पूजा करना, जिनप्रतिमा की जिनमंत्र से सात बार मंत्रित करके शुद्धि करना, जिनप्रतिमा का अभिषेक करना, सर्वौषधि द्वारा अभिषेक करके प्रतिमा की शुद्धि करना, कंकणबंधन करना, शुद्ध वस्त्र से प्रतिमा को आच्छादित करना, नेत्रोन्मीलन करना, यागमंडल की स्थापना एवं पूजा करना, सोलह विद्या देवियों की पूजा करना, जिन माताओं, चौबीस यक्षों, चौबीस यक्षिणियों, द्वारपाल एवं दिक्पालों की पूजा विधि आदि का भी उल्लेख मिलता है। दिगम्बर - परम्परा में १६ विद्यादेवियों, २४ जिनमाताओं, २४ यक्ष-यक्षिणियों एवं द्वारपाल की पूजा के उल्लेख तो हैं, किन्तु रत्नत्रय, जिनपिता, चौसठ इन्द्राणियों आदि की पूजा का उल्लेख हमें वहाँ नहीं मिलता है। दिगम्बर- परम्परा में बत्तीस इन्द्रों की पूजा विधि का निर्देश है६५४, किन्तु आचारदिनकर में बत्तीस की जगह चौसठ इन्द्रों की स्थापना एवं पूजा विधि करने का उल्लेख मिलता है । ६५५ इसी प्रकार दिगम्बर- परम्परा में दस वलय वाले नंद्यावर्त्त मंडल के स्थान पर नौ वलय से युक्त यागमंडल के आलेखन एवं पूजन करने का विधान है तथा इन वलयों में स्थापित किए जाने वाले पंचपरमेष्ठी आदि की विधि में भी अन्तर है। इसके साथ ही आचारदिनकर में निर्दिष्ट नंद्यावर्त्त में वर्तमान चतुर्विंशति जिन के स्थापन एवं पूजन का उल्लेख मिलता है, ६५६ जबकि दिगम्बर- परम्परा के यागमंडल में अतीत, अनागत एवं वर्तमान- इन तीनों काल के २४ तीर्थंकरों एवं बीस विहरमान के स्थापन एवं पूजन का उल्लेख मिलता है । ' ६५७ एवं आचारदिनकर में बृहत्स्नात्रविधि, नंद्यावर्त्त - विसर्जन की विधि आदि का भी उल्लेख मिलता है। दिगम्बर- परम्परा में इन विधियों का उल्लेख नही मिलता है। वैदिक-परम्परा में आचारदिनकर की भाँति नंद्यावर्त्त-पूजन जिनबृहत्स्नात्र - विधि आदि का उल्लेख नहीं मिलता है- यह स्वाभाविक भी है। यद्यपि वैदिक-परम्परा में प्रतिष्ठा के समय सर्वतोभद्रमण्डल की स्थापना एवं उसमें स्थापित ब्रह्मादि देवों का आज्य से होम करने का उल्लेख मिलता है । ६५८ शिवादि की प्रतिष्ठा के समय द्वारपालों, दिग्पालों के पूजन, अभिषेक, कलशस्थापन, बलि-विधान, यागमण्डप आदि का उल्लेख मिलता है। जैन परम्परा एवं 325 ६५४ प्रतिष्ठासारोद्धार, पं. आशाधरजी, अध्याय-३, पृ. ६०, पं. मनोहरलाल शास्त्री, श्री जैन ग्रन्थ उद्धारक कार्यालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६७४. ६५५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेंतीसवाँ, पृ. १५६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ६५६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेंतीसवाँ, पृ. १५६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ६५७ प्रतिष्ठापाठ, जयसेनाचार्यकृत, पृ. १५४ १८२, सेठ हीराचंद नेमचंद डोशी, मंगलवार पेठ, शोलापुर वी.सं. २४५२ ६५८ प्रतिष्ठामयूख, अनु.- डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ. ३१३, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करण १६६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy