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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
उल्लेख किया है। तत्पश्चात् मण्डप के मध्य में वेदिका की रचना करें, इत्यादि । जिनबिम्ब के स्थापन से पूर्व की भूमिका की वर्धमानसूरि ने विस्तार से चर्चा की हैं दिगम्बर - परम्परा में भी जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा से पूर्व उपर्युक्त विधि-विधान करने के उल्लेख मिलते है, किन्तु स्थिरबिम्ब को पंचरत्न तथा कुम्भकार के चक्र की मृत्तिका सहित स्थापित करने तथा चलबिम्ब के नीचे पवित्र नदी की बालू एवं मूल सहित दर्भ रखने का उल्लेख नहीं मिलता है। वैदिक परम्परा में भी मण्डप आदि बनाने के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु अग्निपुराण में जो प्रतिष्ठा - विधि दी है, उसमें शिव आदि देवों की प्रतिमा के नीचे दूब आदि रखने का उल्लेख नहीं मिलता है । हाँ, प्रतिष्ठा के समय स्वर्ण एवं चाँदी आदि धातुओं से निर्मित वस्तुओं के रखने सम्बन्धी उल्लेख अवश्य मिलते हैं।
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आचारदिनकर६५३ में बिम्ब-प्रतिष्ठा से पूर्व दिक्पालों की स्थापना, उनकी पूजा करना, चारों दिशाओं में भूतबलि देना, स्नात्रकारों, विधिकारक एवं आचार्य के देह की रक्षा एवं सकलीकरण करना, चैत्यवंदन करना, देवी-देवताओं के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति करना, लघुस्नात्रपूजा करना, बिम्ब पर पुष्पांजलि अर्पण करना, मुद्राओं द्वारा बिम्ब की रक्षा करना, दसों दिशाओं का दिग्बन्ध करना, विभिन्न औषधियों आदि के माध्यम से जिन बिम्ब का अभिषेक करना, कंकण-बंधन करना, दस वलयों से युक्त नंद्यावर्त्त का आलेखन पूर्वक उसकी विस्तार से पूजा करना, तथा पंचपरमेष्ठी एवं रत्नत्रय को छोड़कर नंद्यावर्त्त में स्थित सभी देवी-देवताओं एवं जिन के माता एवं पिता आदि को आहूति प्रदान करना, वेदिका सम्बन्धी विधि-विधान करना, बिम्ब-प्रतिष्ठा का समय नजदीक आने पर चौबीस हाथ परिमाण चन्दन से वासित एवं पुष्पों से युक्त सदश नवीन श्वेत वस्त्र से प्रतिमा आदि आच्छादित करना आदि, ऐसे अनेक कार्य किए जाते है। इन सब कार्यों के बाद गुरु अधिवासनामंत्र से जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा करते हैं, स्नात्रकार सप्तधान्यों से युत जल से बिम्ब का स्नान आदि कराते है। बिम्ब की अंजनशलाका किस प्रकार से एवं किस समय करें- इसका भी विधिवत् वर्णन आचारदिनकर में किया गया है। आचार्य किस प्रकार से बिम्ब के दाएँ कर्ण में मंत्र बोले, प्रतिमा का स्थिरीकरण किस प्रकार से करे, मुद्रा पूर्वक मंत्र का सर्वांगों पर किस प्रकार से न्यास करे ? पुनः चैत्यवंदन देवी - देवताओं के आराधनार्थ कायोत्सर्ग किस प्रकार से करे, किस प्रकार से मंगलपाठ बोले, देशना दे, आदि कार्यों का भी आचारदिनकर में विस्तृत वर्णन मिलता है। दिगम्बर - परम्परा में भी प्रकारान्तर से इनमें से कुछ विधि-विधानों का उल्लेख मिलता है। जैसे
६५३ अग्निपुराण, सं. प. श्रीराम शर्मा, प्रकरण- १४५, पृ. २३८, संस्कृति संस्थान, बरेली, १६८७.
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