SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 310 साध्वी मोक्षरत्ना श्री एकान्तरित आयंबिल सहित उपवास करने का, छः मास तक अपेक्षाकृत सामान्य तप करते हुए पारणे के दिन परिमित आहार लेकर आयंबिल करने का, छः मास तक विकृष्ट तप करने का तथा अंतिम बारहवें वर्ष में कोटिसहित आयंबिल करने का निर्देश दिया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र की भाँति आचारदिनकर में बारहवें वर्ष के पश्चात् एक पक्ष या एक मास के अनशन करने का भी उल्लेख नहीं मिलता है । यद्यपि वर्धमानसूरि ने मतांतर से संलेखना की अन्य विधि का भी निरूपण किया है, किन्तु वह विधि भी उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित विधि से पूर्णतः सदृश नहीं है, दोनों में कुछ अन्तर है, जिसे हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं (१) उत्तराध्ययनसूत्र में दूसरे चार वर्षों में मात्र विकृतियों का ही त्याग करने का निर्देश दिया गया है, जबकि आचारदिनकर में प्रथम चार वर्षों में विभिन्न तप, अर्थात् बिना अन्तर के दो उपवास, तीन उपवास, चार उपवास, पाँच उपवास, आठ उपवास, पक्षक्षमण (पन्द्रहदिन के निरंतर उपवास) मासक्षमण ( तीस दिन के निरन्तर उपवास ) आदि के पारणे एकाशन करने का निर्देश दिया गया है। (२) उत्तराध्ययनसूत्र में दूसरे चार वर्षों में विविध तप, अर्थात् उपवास, बेला, तेला आदि करने का उल्लेख मिलता है, किन्तु आचारदिनकर में द्वितीय चार वर्षों में एकान्तरित नीवि सहित उपवास करने का निर्देश दिया गया है। (३) उत्तराध्ययनसूत्र में तीसरे दो वर्षो में एकान्तर उपवास के पारणे आयम्बिल करने का निर्देश दिया गया है। आचारदिनकर में भी दो वर्षों में एकान्तर उपवास के पारणे आयम्बिल करने का निर्देश मिलता है, किन्तु साधक चाहे, तो नीवि भी कर सकता है। (४) उत्तराध्ययनसूत्र में ग्यारहवें वर्ष के छः महीनों तक उत्कृष्ट तप नहीं करने का निर्देश दिया गया है, जबकि आचारदिनकर में छः महीने तक उपवास या छट्ठ के पारणे में ऊनोदरीयुक्त आयम्बिल करने का सूचन दिया गया है। (५) उत्तराध्ययनसूत्र में तत्पश्चात् छः मास तक विकृष्ट तप करने का निर्देश दिया गया है, जबकि आचारदिनकर में छः मास तक दशम तप के पारणे आयम्बिल करने का निर्देश दिया गया है। (६) उत्तराध्ययनसूत्र में अंतिम बारहवें वर्ष में कोटिसहित आयम्बिल करने का निर्देश दिया गया है तथा अन्त में एक पक्ष या एक मास का अनशन करने का निर्देश दिया गया है, आचारदिनकर में भी कोटिसहित आयम्बिल करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy