________________
287
वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
वर्धमानसूरि के अनुसार आचार्य-पद की भाँति ही शुभ नक्षत्र, तिथि, वार एवं लग्न में साध्वी को महत्तरा-पद प्रदान करना चाहिए। इस सम्बन्ध में प्रायः विधि-विधान सम्बन्धी ग्रन्थों के सभी ग्रन्थकारों का मतैक्य है।
___ आचारदिनकर में महत्तरा-पद प्रदान करने से पूर्व श्रावकों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं, यथा'७२- अमारि घोषणा करना, वेदी बनवाना, ज्वारारोपण करना इत्यादि क्रियाओं का उल्लेख मिलता है, किन्तु विधिमार्गप्रपा, सामाचारी, सुबोधासामाचारी आदि में हमें श्रावकों द्वारा इन क्रियाओं के किए जाने का उल्लेख नहीं मिलता है।
महत्तरा पद प्रदान करने की मूल विधि प्रायः सभी ग्रन्थों में एक सदृश ही है। कहीं-कहीं अपनी-अपनी गुरु परम्परा के कारण आंशिक भिन्नता अवश्य दृष्टिगोचर होती है। आचारदिनकर के अनुसार महत्तरा-पद के अनुज्ञार्थ जो वासक्षेप अभिमंत्रित किया जाता है, उसे पाँच मुद्राओं, यथा७३- सौभाग्यमुद्रा, परमेष्ठीमुद्रा गरूड़मुद्रा, मुद्गरमुद्रा एवं कामधेनुमुद्रा से अभिमंत्रित किया जाना चाहिए। विधिमार्गप्रपा, सामाचारी, सुबोधा सामाचारी में वासक्षेप को अभिमंत्रित करने का तो उल्लेख मिलता है, किन्तु उसे पाँच मुद्राओं से अभिमंत्रित करेइसका उल्लेख नहीं मिलता है। इसी प्रकार आचारदिनकर में वर्द्धमानविद्या प्रदान करने के बाद महत्तरा साध्वी को वर्धमानविद्यापट देने का उल्लेख मिलता है, किन्तु विधिमार्गप्रपा, सामाचारी, सुबोधा सामाचारी आदि में महत्तरा-पद प्रदान करने के पश्चात् साध्वी को वर्धमानविद्यापट प्रदान करने का उल्लेख नहीं मिलता है।
आचारदिनकर में वर्धमानसरि ने महत्तरा द्वारा करणीय एवं अकरणीय कार्यों का भी स्पष्ट निर्देश किया है, यथा- हे वत्स! साध्वियों को दीक्षा देना, गृहस्थों को व्रतों की अनुज्ञा देना, साधु एवं साध्वियों को अनुशासित करना, श्राविकावर्ग द्वारा द्वादशावर्तसहित वंदन करवाना, इत्यादि कार्य यथाविधि तुम सम्पन्न कर सकती हो, परन्तु तुम्हें मुनि दीक्षा देने एवं प्रतिष्ठा करवाने की अनुज्ञा नहीं है-इत्यादि", किन्तु सामाचारी एवं सुबोधासामाचारी में महत्तरा के कार्यों सम्बन्धी विधि-निषेधों का निर्देश (उल्लेख) हमें नहीं मिलता है। विधिमार्गप्रपा
१६२२.
५७२आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- उनतीसवाँ, पृ.-१२०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण ५७'आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- उनतीसवाँ, पृ.-१२०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण
१६२२. आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- उनतीसवाँ, पृ.-१२१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण
१६२२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org