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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री बताया गया है कि आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक तथा वाचनाचार्य या गीतार्थ श्रेष्ठ साधु दीक्षा देने के अधिकारी हैं, अन्य नहीं। 232 दीक्षाविधि का प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम नक्षत्र, वार, लग्न आदि का विचार करे। तदनन्तर शुभलग्न में दीक्षा के पूर्व पौष्टिककर्म करें और महादान दें। वधू को छोड़कर दीक्षा की सम्पूर्ण विधि विवाह के समान ही होती है । तदनन्तर यह बताया गया है कि उपनयन से उपनीत तथा जिन्होंने गृहस्थधर्म, ब्रह्मचर्यव्रत एवं क्षुल्लकत्व का पालन किया है- ऐसे ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य इस व्रत के योग्य होते हैं। इसी प्रकार के द्विजों के समान आचरण करने वाला शूद्र भी दीक्षा के योग्य हो सकता है, किन्तु दीक्षा से पूर्व शूद्र को सर्वप्रथम उपनीत किया जाता है, तत्पश्चात् उसे दीक्षा प्रदान की जाती है। दीक्षाविधि का प्रारम्भ करने हेतु सर्वप्रथम गुरु के उपाश्रय में वेदिका की रचना कर समवसरण की स्थापना करे तथा समवसरण में स्थित अरहंत परमात्मा की पूजा करें। तत्पश्चात् दीक्षार्थी स्वजनों के साथ ऋद्धिपूर्वक चैत्य में अरिहंत परमात्मा की पूजा करके पुनः गुरु के उपाश्रय में आए। तत्पश्चात् दीक्षार्थी स्वयं वस्त्रालंकार आदि उतारकर सिर के केशों का लोच या मुण्डन करवाकर सिर पर शिखा मात्र रखें और अपने परिवारजनों के साथ गुरु के पास जाए । तत्पश्चात् दीक्षार्थी समवसरण को तीन प्रदक्षिणा दे । तत्पश्चात् परिजनों की अनुमतिपूर्वक और दीक्षार्थी द्वारा क्रमशः सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक, देशविरतिसामायिक एवं सर्वविरतिसामायिक आरोपण करने की याचना करने पर इन्हें प्रदान करने का क्रम चलता है। इस क्रम से गुरु शिष्य को वासक्षेप प्रदान करते हैं तथा देववंदन एवं श्रुतदेवता आदि के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति करवाते है । तदनन्तर शिष्य गुरु को विनयपूर्वक वेश प्रदान करने हेतु निवेदन करता है तथा गुरु उस निवेदन को स्वीकार कर उसे विधिपूर्वक मुनिवेश प्रदान करते है। शिष्य अहोभावपूर्वक उस वेश को ग्रहण करके ईशान कोण में जाकर उसे धारण करे तथा पुनः गुरु के समीप आकर शिखा के केशों के लोच करने हेतु प्रार्थना करे। गुरु शिखा का लोच करके दीक्षार्थी को सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, देशविरतिसामायिक एवं सर्वविरतिसामायिक का आरोपण कराए। गुरु दीक्षार्थी को उपर्युक्त सामायिकों का आरोपण किस प्रकार से कराए? इसका भी मूल ग्रन्थ में विस्तृत वर्णन हुआ है। दीक्षा के दिन गुरु दीक्षार्थी को आयम्बिल का प्रत्याख्यान कराए। तदनन्तर गुरु शिष्य का सप्तशुद्धियों से युक्त नामकरण करे। नामकरण के पश्चात् संघ दीक्षार्थी के सिर पर अक्षत एवं मुनिजन वासक्षेप प्रक्षिप्त करें। तत्पश्चात् शिष्य समवसरण एवं गुरु की प्रदक्षिणा करके गुरु को और अन्य साधुओं को उनके दीक्षापर्याय के क्रमपूर्वक वंदन करे। तदनन्तर साध्वीगण तथा श्रावक-श्राविकाएँ एवं क्षुल्लकों के आचार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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