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________________ 226 संस्कार का कर्त्ता - आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार यतिगुरु द्वारा करवाया जाता है।४६' दिगम्बर-परम्परा में क्षुल्लक - संस्कार की विधि कौन करवाए ? इसमें सम्बन्ध आदिपुराण में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिलते हैं, परन्तु सामान्यतः यह विधि मुनि या भट्टारक द्वारा करवाई जाती है। हुम्बुज श्रमण भक्तिसंग्रह " में भी यह विधि गुरु ( मुनि) द्वारा करवाने का कहा गया है। _४६२ आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रस्तुत की हैक्षुल्लक विधि इस विधि में वर्धमानसूरि ने क्षुल्लकव्रत ग्रहण करने के योग्य साधक की योग्यता का वर्णन करते हुए कहा है कि त्रिकरण की शुद्धिपूर्वक तीन वर्ष तक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने पर तीसरे वर्ष के अन्त में व्यक्ति क्षुल्लकत्व को प्राप्त करने योग्य होता है। इसके लिए साधक सर्वप्रथम गुणसम्पन्न गुरु के पास जाकर, दीक्षा के उपयुक्त लग्न आने पर सिर मुण्डित करवाकर स्नान करे तथा शिखा एवं उपवीत को धारण करे। तत्पश्चात् गमनागमन में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करे, तदनन्तर व्रतारोपण के सदृश क्रिया करते हुए एक अवधि विशेष हेतु दो करण तीन योग से सामायिकव्रत, पंचमहाव्रत एवं छठवें रात्रिभोजन - विरमणव्रत को ग्रहण करे। उपर्युक्त व्रतों को ग्रहण करने की क्या विधि है ? इसका मूलग्रन्थ में विस्तार से उल्लेख किया गया है। तदनन्तर गुरु साधक को क्षुल्लकाचार का उपदेश देते हैं तथा उसके द्वारा करणीय कार्यों की अनुमति प्रदान करते है । तदनन्तर गुरु क्षुल्लक को वासक्षेप प्रदान करे एव संघ वर्धापन करे। तत्पश्चात् क्षुल्लक गुरु की अनुज्ञा से मुनि की तरह धर्मोपदेश देते हुए तीन वर्ष की अवधि तक विचरण करे। तीन वर्ष तक संयम की यथावत् परिपालना करने पर ही वह प्रव्रज्या के योग्य बनता है, अन्यथा वह पुनः गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर सकता है। इससे सम्बन्धित विधि की विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के द्वितीय भाग के अठारहवें उदय के अनुवाद को देखा जा सकता है | साध्वी मोक्षरत्ना श्री ४६१ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-अठारहवाँ, पृ. ७२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ४६२ हुम्बुज श्रमण भक्तिसंग्रह, पृ. ४६७, श्रीसंतकुमार खण्डाका, खण्डाका जैन ज्वैलर्स, हल्दियों का रास्ता, जयपुर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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