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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री जैन- संस्कार - विधि में इसका विवेचन मिलता है । ३६६ वैदिक - परम्परा में भी के ग्रन्थ आचारदिनकर की भाँति ही इसकी विस्तृत विवेचना अमुक नक्षत्रों में, शुभ समय में, अमुक तिथियों में एवं जब तब उपनयन संस्कार करना चाहिए। इसी प्रकार विभिन्न आधार पर भी वर्ण विशेष का उपनयन संस्कार करने का 180 श्वेताम्बर - परम्परा मिलती है, • ३७० जैसे सूर्य उत्तरायण में हो, ऋतुओं एवं मासों के उल्लेख मिलता है। ३७१ _३७२ वर्धमानसूरि के अनुसार " ब्राह्मणों में गर्भाधान से या जन्म से आठवें वर्ष में, मौंजी बन्धन करने का विधान है। क्षत्रियों में ग्यारहवें वर्ष में एवं वैश्यों को बारहवें वर्ष में उपनयन संस्कार करने का और तत्पश्चात् वेदाध्ययन कराने का विधान है। दिगम्बर - परम्परा के ग्रन्थों में विभिन्न वर्गों हेतु विभिन्न वर्षों का निर्देश न करते हुए मात्र इतना ही उल्लेख किया है कि गर्भ से आठवें वर्ष में बालक का उपनयन संस्कार करना चाहिए। वैदिक परम्परा में यह संस्कार कब किया जाए, इस सम्बन्ध में मतभेद हैं, परन्तु सामान्यतः आश्वलायनगृह्यसूत्र में७३ ब्राह्मणकुमार का उपनयन आठवें वर्ष में, क्षत्रिय का ग्यारहवें वर्ष में एवं वैश्य का बारहवें वर्ष में होना बताया है। इस प्रकार आश्वलायन गृह्यसूत्र में उपनयन संस्कार का जो समय बताया गया है, वह आचारदिनकर ग्रन्थ में निर्दिष्ट काल का प्रायः समर्थन करता है। ३७४ वर्धमानसूरि के अनुसार " इस संस्कार में उपनयन के योग्य व्यक्ति को पहले नौ, सात, पाँच या तीन दिन तक तेल का मर्दन कर स्नान करवाया जाता है तथा लग्नदिन आने पर गृहस्थ गुरु उसके घर जाकर ब्रह्ममुहुर्त में पौष्टिक कर्म करता है एवं उसके सिर पर एक शिखा रखकर शेष बालों का मुण्डन करवाता है। दिगम्बर-परम्परा में३७५ इस संस्कार के प्रारंभ में अर्हन्तदेव की पूजा करने का ३६६ जैन संस्कार विधि, नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय- २, पृ. १३, श्री वीरनिर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, गोम्मटगिरी, इन्दौर, पांचवीं आवृत्ति २०००. ३७० देखे धर्मशास्त्र का इतिहास (भाग-प्रथम), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय ७, पृ. २२०, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८० हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-७ (द्वितीय परिच्छेद), पृ. १६४, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय - बारहवाँ, पृ. २०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् ३७१ ३७२ १६२२ ३७३ देखे धर्मशास्त्र का इतिहास (भाग-प्रथम), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय ७, पृ. २२१, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८० आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय - बारहवाँ, पृ. २०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् ३७४ - १६२२ आदिपुराण जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण : २००० ३७५ Jain Education International - डॉ. पन्नालाल जैन, (द्वितीय भाग) पर्व - अड़तीसवाँ, पृ. २४८, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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