SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 181 उल्लेख मिलता है। वैदिक-परम्परा में इस संस्कार से पूर्व गणेश एवं मातृकाओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है तथा उपनयन से पूर्व रात्रि को बालक के शरीर पर हल्दी का लेप करने तथा उसकी शिखा से चाँदी की अंगूठी बांधने का भी उल्लेख मिलता है।३७६ वर्धमानसरि ने आचारदिनकर में इस संस्कार हेतु किस प्रकार के भू-भाग पर कैसी वेदी बनाएं, उसकी प्रतिष्ठा कैसे करें, क्रिया हेतु किस प्रकार के वस्त्र धारण करें तथा वेदी के समक्ष किस प्रकार से क्रिया करें, इसका बहुत सूक्ष्म विवेचन किया है। दिगम्बर-परम्परा एवं वैदिक-परम्परा में इस प्रकार की क्रियाविधि का उल्लेख हमें देखने को नहीं मिला। वैदिक-परम्परा में उपनयन से पूर्व माता के साथ सहभोज करना, मुण्डन के बाद स्नान करना आदि क्रियाविधि विशेष रूप से बताई गई है,२७७ जो जैन-परम्परा की दोनों शाखाओं में दृष्टिगत नहीं होती है, किन्तु उसका इससे कोई विरोध भी नहीं है। वर्धमानसरि ने उपनयन संस्कार आरंभ करने के लिए भी एक विशिष्ट मंत्र बताया है। जबकि दिगम्बर-परम्परा एवं वैदिक-परम्परा में उपनयन-संस्कार आरंभ करने हेतु इस प्रकार के विशिष्ट मंत्र का उल्लेख नहीं मिलता है। इसी प्रकार ऐसी अनेक क्रियाएँ हैं, जो आचारदिनकर में उल्लेखित हैं, जैसे - संस्कार के दिन उपनेय व्यक्ति को जल एवं यव, अर्थात् तेलरहित खाद्यवस्तु से आयम्बिल करना, अमृतमंत्र के अभिमन्त्रित जल से उपनेय को अभिसिंचित करना, चंदनमंत्र से अभिमंत्रित चन्दन से हृदय पर उपवीतरूप कटि पर मेखलारूप एवं ललाट पर तिलकरूप रेखा करना इत्यादि। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इस प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख हमें दृष्टिगत नहीं हुआ। कुछ ऐसी भी क्रियाएँ हैं, जो तीनों ही परम्पराओं में की जाती हैं, जैसे - कटिसूत्र, लंगोटी, उपवीत एवं दण्ड को धारण करवाना, परन्तु जिस प्रकार वर्धमानसूरि ने मेखला आदि का परिमाण वगैरह बताया है, जैसे - मेखला इक्यासी हाथ परिमाण की हो, आदि, इस प्रकार का उल्लेख हमें दिगम्बर-परम्परा एवं वैदिक-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में नहीं मिला। १७६ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-७ (द्वितीय परिच्छेद), पृ.-१६५-६६, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ १७७ हिन्दू संस्कार विधि, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-सप्तम (द्वितीय परिच्छेद), पृ.-१६५-१६६, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५. २७ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-बारहवाँ, पृ.-२०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy