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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 173 वहाँ उल्लेख नहीं मिलता है और न ही मण्डलीपूजा, गुरुवंदन आदि क्रियाओं का उल्लेख मिलता है। वैदिक-परम्परा ५० में सिर का मुण्डन करने के पश्चात् कटे हुए केशों को गोबर में रखकर गौशाला में गाढ़ दिए जाने या तालाब आदि में डाल दिए जाने का विधान है। इस परम्परा में भी ब्राह्मण (विधिकारक) एवं नापित को दान-दक्षिणा दी जाती है - ऐसे उल्लेख हैं। वैदिक-परम्परा में कन्या का चूड़ाकरण करने का भी निर्देश मिलता है, पर इस सम्बन्ध में मंत्रोच्चार का निषेध किया गया है।३५१ वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में इस संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री का भी निर्देश दिया है, किन्तु दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में इस प्रकार का कोई उल्लेख हमें देखने को नहीं मिला, जबकि वैदिक-परम्परा में ग्रन्थों में भी इस संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री का वर्णन किया गया है।३५२ इस प्रकार तीनों परम्पराओं में चूड़ाकरण-संस्कार के विधि-विधान में कहीं समरूपता दिखाई देती है, तो कहीं भिन्नता भी दिखाई देती है। उपसंहार - इस संस्कार का तुलनात्मक विवेचन करने के पश्चात जब हम इसकी उपादेयता के सम्बन्ध में समीक्षात्मक दृष्टि से विचार करते हैं, तो हम पाते हैं कि यह एक सर्वमान्य संस्कार था, जिसे सभी परम्पराओं ने स्वीकार किया है, सिर को स्वच्छ रखने के लिए यह आवश्यक था कि गर्भकाल के केशों को छेदन किया जाए, जिससे सिर में जीवादिक की उत्पत्ति न हो। दूसरा, इस संस्कार के सम्बन्ध में यह मान्यता भी थी कि इस संस्कार से व्यक्ति की आयु दीर्घ होती है, जिसका स्पष्टीकरण करते हुए वैदिक विद्वान् सुश्रुत कहते हैं - "मस्तक के भीतर की ओर शिरा तथा सन्धि का संनिपात है। इस अंग को किसी भी प्रकार का आघात लगने पर तत्काल मृत्यु हो जाती है।"३५३ अतः इस महत्वपूर्ण अंग की सुरक्षा आवश्यक मानी जाती थी, और इसीलिए इस अंग पर शिखा रखकर इस प्रयोजन ३५० देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ.-१२७, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १९६५ ३० देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८, उत्तरप्रदेश हिन्दी ___ संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १९८०. ३५२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-ग्यारहवाँ, पृ.-१८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२. ३५३ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ.-१२८, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १९६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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