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________________ साध्वी मोक्षरला श्री 172 दिगम्बर-परम्परा में चौलकर्म करते समय निम्न मंत्र बोले जाते हैं.४६ - “उपनयनमुण्डभागी भव, निर्ग्रन्थमुण्डभागी भव, निष्क्रान्तिमुण्डभागी भव, परमनिस्तारकेशभागी भव, परमेन्द्रकेशभागी भव, परमराज्यकेशभागी भव, आर्हन्त्यराज्यकेशभागी भव।" वैदिक-परम्परा में चौलकर्म के समय जो मन्त्र बोले जाते हैं, उनका हिन्दी रूपान्तरण निम्न है।४७ - “मैं आयुष्य, अनाद्य, प्रजनन, ऐश्वर्य (रायस्पोष), सुप्रजात्य तथा सुवीर्य के लिए केशों को काटता हूँ।" सिर के पीछे के केश को “तिगुनी आयु" आदि मंत्रों द्वारा तथा सिर के दाहिनी एवं बाईं ओर के केशों को अन्य मंत्रों से काटते इस प्रकार तीनों ही परम्पराओं के मंत्रो में भिन्नता है, परन्तु श्वेताम्बर-परम्परा में बोले जाने वाले मंत्र का भावार्थ किंचित् रूप से वैदिक-परम्परा के मंत्रवाक्यों से मिलता-जुलता है। श्वेताम्बर-परम्परा४८ में सिर का मुण्डन होने के बाद परमेष्ठीमंत्र का पाठ करते हुए बालक को आसन से उठाकर स्नान कराते हैं। फिर चन्दन आदि का लेप करके एवं सुन्दर वस्त्राभूषण से सज्जित करके उपाश्रय ले जाते हैं तथा वहाँ जाकर मंडलीपूजा, गुरुवंदन, वासक्षेप-ग्रहण आदि क्रियाएँ करते हैं। साधुओं को वस्त्र, अन्न, पात्र आदि का दान करते हैं तथा गृहस्थ गुरु एवं नाई को भी उचित दान दिया जाता है। इस प्रकार यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थ आदिपुराण४६ में भी श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति ही केशवाप की क्रिया के पश्चात् बालक को स्नान कराकर, चन्दनादि का लेप लगाकर उत्तम आभूषणों से सज्जित किया जाता है। इसके बाद बालक से मुनि भगवंत को नमस्कार करवाते हैं - ऐसा उल्लेख मिलता है, परन्तु मुनि भगवंत को आहार आदि देने एवं विधि कराने वाले ब्राह्मण आदि को दान देने का ३४६ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-३०६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २००० ३४७ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ.-१२६, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ ३४८ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथमविभाग), उदय-ग्यारहवाँ, पृ.-१८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् ____ १६२२. ३४६ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४८, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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