SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 174 साध्वी मोक्षरत्ना श्री को पूर्ण किया जाता था। तीसरे, बालक का सिर अत्यन्त कोमल होता है, उसके सिर का मुण्डन करते समय माता-पिता के मन में भय बना रहता है कि केश छेदन के तीक्ष्ण औजार से उसके सिर पर किसी प्रकार का आघात या क्षति न हो। इस भय से मुक्त होने के लिए तथा शिशु के सिर की अस्थियों के कठोर होने पर उसके प्रति मंगल कामना व्यक्त करते हुए यह संस्कार किया जाता था। ___ संक्षेप में सिर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। जिस प्रकार प्रत्येक नगर में एक ऊर्जाकेन्द्र या विद्युतकेन्द्र होता है, उसी प्रकार मस्तिष्क भी हमारे पूरे शरीर की क्रिया का विद्युतकेन्द्र है, अतः उस अंग की सुरक्षा एवं स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक था, इसी कारण इस संस्कार को अनिवार्य माना गया। उपनयन-संस्कार उपनयन-संस्कार का स्वरूप - उपनयन का शाब्दिक अर्थ है - समीप या सन्निकट ले जाना। इस संस्कार में बालक को विधि-विधानपूर्वक आचार्य के पास ले जाकर ज्ञानार्जन हेतु ब्रह्मचर्यव्रत की दीक्षा देकर विद्यार्थी बनाया जाता है। यह एक ऐसा संस्कार है, जिसके माध्यम से बालक को विद्याध्ययन के योग्य बनाया जाता है। इस संस्कार के माध्यम से संस्कारित बालक गुरु के सान्निध्य में रहकर एक निश्चित अवधि तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विद्याध्ययन करता है। तीनों ही परम्पराओं में इस संस्कार को स्वीकार किया गया है तथा इस संस्कार का प्रयोजन विद्याध्ययन माना गया है। ___ इस संस्कार के अन्तर्गत की जाने वाली क्रियाएँ, जैसे - यज्ञोपवीत. जिसे वर्धमानसूरि ने जिनउपवीत का नाम दिया हैं, आदि की क्रियाएँ प्रायः समान हैं, फिर भी परम्पराओं की भिन्नता की अपेक्षा से उनमें आंशिक भेद भी देखा जाता इस संस्कार के प्रयोजन के सम्बन्ध में जब हम विचार करते है, तो पाते हैं कि मूलतः विद्याध्ययन ही इसका प्रमुख प्रयोजन था और इस हेतु छात्र को आचार्य के सान्निध्य में रखा जाता था, किन्तु वर्धमानसूरि के अनुसार५४ व्यक्ति को वर्ण विशेष में प्रवेश करने के लिए और तदनुरूप वेश एवं मुद्रा को धारण ३५४ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-बारहवाँ, पृ.-१६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy