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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रकट हो जाती है। लगभग ५०-६० वर्षों से यह संस्कार पुरुष वर्ग में उपेक्षित हो गया था, किन्तु वर्तमान में कितने ही लोग कर्णछेदन कराने लगे हैं। चूड़ाकरण - संस्कार चूड़ाकरण - संस्कार का स्वरूप इस संस्कार में बालक के मस्तक का प्रथम बार मुण्डन किया जाता है। चूड़ा शब्द का तात्पर्य बालों के गुच्छ या शिखा से है, जो मुण्डित सिर पर रखी जाती है। इसे चोटी या शिखा भी कहते हैं। इस प्रकार चूड़ाकर्म वह संस्कार है, जिसमें जन्म के उपरान्त पहली बार सिर पर एक बालगुच्छ ( शिखा ) रखकर शेष सिर के बालों का मुण्डन किया जाता है। तीनों ही परम्पराओं में इस संस्कार को इसी रूप में स्वीकार किया गया है। इस संस्कार को करने का मूलभूत प्रयोजन क्या है ? इस सम्बन्ध में जब हम विचार करते हैं, तो हम पाते हैं कि प्राचीन समय में सिर को स्वच्छ रखने के लिए यह संस्कार किया जाता था। लेकिन कालप्रवाह के साथ जैसे-जैसे इससे लाभ होने लगा, वैसे-वैसे व्यक्ति की यह धारणा बन गई कि इस संस्कार से व्यक्ति को दीर्घ आयु, सौन्दर्य तथा कल्याण की प्राप्ति होती है। हिन्दुओं के आयुर्वेद सम्बन्धी ग्रन्थों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। इस संस्कार को करने का मुख्य प्रयोजन गर्भकाल के केशों का मुण्डन रहा है । कुछ लोगों की यह भी मान्यता थी कि पूर्वजन्म के मस्तिष्क में बैठे कुसंस्कारों- कुप्रभावों को समाप्त करने के लिए यह संस्कार किया जाना चाहिए, जिससे बालक पाशविक संस्कारों से मुक्त हो सके तथा वह मानवीय सद्गुणों से ओत-प्रोत बन सके। दूसरा, गर्भ के बाल अपवित्र माने जाते हैं तथा उन्हें हटाना भी आवश्यक था। इस प्रकार इन उद्देश्यों को लेकर यह संस्कार किया जाता होगा- ऐसा हम मान सकते हैं। 167 _३२६ आचारदिनकर के अनुसार' यह संस्कार अपनी कुलविधि के अनुसार शुभदिनों में करना चाहिए । यहाँ समयावधि का निर्देश न देकर इस सम्बन्ध में कुल - परम्परा को ही महत्व दिया गया है। दिगम्बर - परम्परा में भी यह संस्कार कब किया जाए, इस सम्बन्ध में पुराणों आदि में कोई निर्देश नहीं मिलता है, किन्तु जैन संस्कार विधि में इससे सम्बन्धित उल्लेख मिलते हैं, जिसके अनुसार यह बालक के पांच वर्ष पूर्ण होने पर किया जाता है, दूसरे या तीसरे वर्ष में भी यह ३२६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय - ग्यारहवाँ, पृ. १८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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