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________________ 168 साध्वी मोक्षरत्ना श्री क्रिया की जा सकती है।३३० वैदिक-परम्परा में यह संस्कार कब किया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं, लेकिन सामान्यतया गृह्यसूत्रों के अनुसार३३१ चूडाकरण-संस्कार जन्म के पश्चात् प्रथम वर्ष के अन्त में या तृतीय वर्ष की समाप्ति के पूर्व किया जाता है। प्राचीनतम स्मृतिकार मनु भी इसी समय का समर्थन करते हैं। संस्कार का कर्त्ता - आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है। दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार द्विजों (जैन ब्राह्मण) द्वारा करवाने का निर्देश है। वैदिक-परम्परा में भी यह संस्कार ब्राह्मण द्वारा करवाया जाता है। आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने चूड़ाकरण-संस्कार की निम्न विधि प्रतिपादित की है - चूड़ाकरण-संस्कार की विधि - सर्वप्रथम आचारदिनकर में यह संस्कार कब किया जाना चाहिए - इस सम्बन्ध में विचार किया गया है। वर्धमानसूरि के अनुसार बालक का सूर्य जिस मास में बलवान् हो, उस मास में तथा जिस दिन चंद्र बलवान् हो उस दिन, शुभ तिथि, वार एवं नक्षत्रों के होने पर कुलाचार के अनुरूप कुलदेवता के स्थान पर अथवा अन्य किसी स्थान पर पौष्टिककर्म करें। तत्पश्चात् षष्ठीमाता को छोड़कर शेष सभी माताओं की पूजा करें। तदनन्तर कुलाचार के अनुसार कुलदेवता के लिए नैवेद्य, पकवान आदि बनाएं। तत्पश्चात् गृहस्थ गुरु स्नान किए हुए बालक को आसन पर बैठाकर बृहत्स्नात्रविधि से प्राप्त स्नात्रजल से शान्तिदेवी के मंत्र से उसे अभिसिंचित करे। तत्पश्चात् कुल परम्परागत नाई के हाथ से बालक का मुण्डन कराए। तीनों वर्गों के लोगों में मुण्डन किस विधि से कराएं - इसका भी उल्लेख वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में किया गया है। मुण्डन के पश्चात् अभिमंत्रित जल से शिशु को अभिसिंचित करें तथा पंचपरमेष्ठी के स्मरणपूर्वक बालक को आसन से उठाकर स्नान कराएं। तदनन्तर चन्दन आदि का लेप करके ३३० जैन संस्कार विधि, नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय-२, पृ.-१२, श्री वीरनिर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, गोम्मट गिरी, इन्दौर, पांचवी आवृत्ति : २००० २३१ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ.-१२२, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ ३३२ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ.-१२२, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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