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________________ 158 साध्वी मोक्षरत्ना श्री स्मृतियों में सामान्यतया इस संस्कार को करने के लिए छठवाँ महीना उपयुक्त माना गया है। मानवगृह्यसूत्र ने भी इस संस्कार के लिए पांचवाँ या छठवाँ महीना बताया है, जो आचारदिनकर के मत का समर्थन करता है। ___ आचारदिनकर२६७ में यह संस्कार कौन-कौनसे वारों, नक्षत्रों, तिथियों एवं लग्नों में करना चाहिए- इसका बहुत स्पष्ट विवेचन मिलता है। ऐसा स्पष्ट विवेचन दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में नहीं मिलता है। आचारदिनकर में इस संस्कार हेतु शिशु के लिए आहार किस प्रकार से तैयार करें- इसका भी स्पष्ट निर्देश दिया गया है, जबकि दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। वैदिक-परम्परा में इस सम्बन्ध में मार्कण्डेयपुराण२९८ में इतना उल्लेख जरूर मिलता है कि पिता शिशु को मधु और घी के साथ खीर खिलाए। गृह्यसूत्रों में इस संस्कार में मांसाहार के भी कुछ उल्लेख हैं, इससे लगता है कि उस काल में हिन्दू समाज में मांसाहार का प्रचलन रहा होगा, किन्तु इससे परवर्तीकाल के हिन्दुओं के संस्कार सम्बन्धी ग्रन्थों में शिशु को मधु और घी के साथ खीर खिलाए जाने तथा दही, दूध, घी, आदि खिलाए जाने का ही उल्लेख मिलता है। २०० श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार२०१ इस संस्कार में सर्वप्रथम अर्हत् परमात्मा की प्रतिमा को बृहत्स्नात्रविधि से पंचामृत-स्नान कराने का निर्देश है, साथ ही अर्हत्कल्प में निर्दिष्ट नैवेद्य-मंत्र द्वारा इस संस्कार हेतु तैयार किए गए व्यंजनों को परमात्मा के सम्मुख चढ़ाने का विधान है। दिगम्बर-परम्परा में भी अरिहंत परमात्मा की प्रतिमा की पूजा का निर्देश दिया गया है। इसके अतिरिक्त वहाँ किसी प्रकार का और कोई उल्लेख नहीं मिलता है। वैदिक-परम्परा में इस संस्कार के प्रारम्भ में मातृकापूजन एवं गणपति-पूजन का संकेत मिलता है। २०२ २६६ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-२०२, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. ७ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथमविभाग), उदय-नवाँ, पृ.-१६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२. २६ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (चतुर्थ परिच्छेद), पृ.-११७, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १९६५ २६६ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-२०२, उत्तरप्रदेश हिन्दी _ संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. ३०० देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (चतुर्थ परिच्छेद), पृ.-११७, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ २०१ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथमविभाग), उदय-नवाँ, पृ.-१६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२. ३०२ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८६, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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