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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन आचारदिनकर में३०३ गौतमस्वामी की प्रतिमा के समक्ष भी वे सभी वस्तुएँ चढ़ाने का निर्देश है, जो जिनप्रतिमा के समक्ष चढ़ाई गई थीं। विशेष यह कि गौतमस्वामी की प्रतिमा के समक्ष वे सभी वस्तुएँ अमृतास्रव मंत्रोच्चार के साथ चढ़ाने का विधान है। फिर उसी प्रकार की वे सब वस्तुएँ कुलदेवी या कुलदेवता के समक्ष भी चढ़ाने का निर्देश है तथा उस कुलदेवी के नैवेद्य में से ही शिशु के योग्य आहार लेकर गीत-गान करते हुए शिशु के मुख में दिया जाता है। शिशु को आहार देते समय बोले जाने वाले मंत्रों में भी इन सभी परम्पराओं में भिन्नता है, जैसे श्वेताम्बर - परम्परा में गृहस्थ- गुरु निम्न मंत्र बोलता है३०४ "अर्ह भगवानर्हन् त्रिलोकनाथः त्रिलोकपूजितः सुधाधारधारित शरीरोऽपिकावलिकाहारमहारितवान् पश्यन्नपि पारणा विधाविक्षुरसपरमान्नभोजनात्परमानन्ददायकं बलं । तद्देहिन्नौदारिक शरीरमाप्तस्त्वमप्याहारय आहारं तत्ते दीर्घमायुरारोग्यमस्तु अर्हं ॐ।। ” दिगम्बर - परम्परा में इस संस्कार के समय निम्न मंत्र बोला जाता है३०५ " दिव्यामृतभागीभव, विजयामृतभागीभव, अक्षीणामृतभागीभव।” वैदिक - परम्परा में अन्नप्राशन के समय निम्न मंत्र बोला जाता है३०६ 159 "भूः भूवः स्वः .....।” वैदिक-परम्परा में कहीं-कहीं मौनपूर्वक या 'हन्त' शब्द के साथ भी शिशु को भोजन कराने का उल्लेख मिलता है। ३०७ इस प्रकार तीनों परम्पराओं में इस संस्कार के समय बोले जाने वाले मंत्रों में भिन्नता है। श्वेताम्बर - परम्परा में जिस प्रकार के विधि-विधानों का उल्लेख है, वैसा दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में नहीं मिलता है। वैदिक - परम्परा में शिशु को आहार कराने से पूर्व यज्ञ (होम) करने का विधान है। ३०३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथमविभाग), उदय- नवाँ, पृ. १६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२. ३०४ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथमविभाग), उदय- नवाँ, पृ. १६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२. आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक डॉ. पन्नालाल जैन (भाग-२), पर्व - चालीसवाँ, पृ. ३०८, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. ३०५ ३०६ देखे धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ. १८६, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. ३०७ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (चतुर्थ परिच्छेद), पृ. ११७, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १९६५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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