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________________ वर्थमानारिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 157 में से शिशु के योग्य आहार लेकर गीत-गान तथा मंत्रपूर्वक शिशु के मुख में दे। इस अवसर पर यतिगुरु एवं गृहस्थगुरु को किन-किन वस्तुओं का दान दे- इसका भी मूल ग्रन्थ में उल्लेख किया गया है। ____एतदर्थ विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के प्रथम भाग के नौवें उदय के अनुवाद को देखा जा सकता है। तुलनात्मक-विवेचन - शिशु के शारीरिक-विकास की दृष्टि से अन्नप्राशन नामक यह संस्कार अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। इसके महत्व को समान रूप से स्वीकारते हुए भी सभी परम्पराओं में अपने उपास्य देव आदि के भेद से इसके विधि-विधानों में आंशिक मतभेद भी परिलक्षित होता है। श्वेताम्बर-परम्परा में इस संस्कार का उल्लेख अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ राजप्रश्नीय ६२ में मिलता है, किन्तु इस संस्कार के विधि-विधान हमें वहाँ उपलब्ध नहीं होते हैं। आचारदिनकर के अनुसार श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार बालिका के जन्म से पाँचवें महीने में तथा बालक के जन्म से छठवें महीने में शिशु का चन्द्रबल देखकर किया जाता है। जबकि दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार सात या आठ माह व्यतीत होने पर किया जाता है, वैदिक-परम्परा के विद्वानों का इस संस्कार के समय के सम्बन्ध में मतैक्य नहीं है। लौंगाक्षि के अनुसार२६३ - शिशु की पाचनशक्ति के विकसित हो जाने पर तथा दाँत के निकलने पर यह संस्कार करना चाहिए। कुछ विद्वानों के अनुसार - अन्नप्राशन-संस्कार जन्म से छठवें सौर-मास में तथा कारणवशात् स्थगित होने पर आठवें या नौवें या दसवें मास में करना चाहिए, किन्तु कतिपय पण्डितों के मतानुसार यह बारहवें मास में या एक वर्ष पूर्ण होने पर भी किया जा सकता है, किन्तु इससे आगे इसे स्थगित नहीं किया जा सकता है। वैदिक-परम्परा में बालकों का सम मास में एवं बालिकाओं का विषम मास में यह संस्कार करने का उल्लेख मिलता है।२६५ २२ राजप्रश्नीयसूत्र, सम्पादक - मधुकरमुनि, सूत्र-२८०, पृ.-२०६, श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान), द्वितीय संस्करण, १९६१ २६३ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (चतुर्थ परिच्छेद), पृ.-११५, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १९६५ २६४ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (चतुर्थ परिच्छेद), पृ.-११५, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ २६५ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (चतुर्थ परिच्छेद), पृ.-११५, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १९६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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