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________________ 156 साध्वी मोक्षमा श्री ग्रन्थों में२६० यह संस्कार श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति ही सामान्यतः छठवें मास में करने का विधान मिलता है। तीनों परम्पराओं में विधिपूर्वक शिशु को प्रथम अन्न का भोजन कराने की यह प्रथा इस बात की द्योतक है कि यह एक सर्वमान्य प्रथा थी, जिसे सभी परम्पराओं ने एक संस्कार के रूप में स्वीकार किया है। संस्कार का कर्ता - श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार जैन-ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है। दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण के अनुसार भी यह संस्कार जैन-ब्राह्मण द्वारा ही करवाया जाता है। वैदिक-परम्परा में यह संस्कार ब्राह्मण द्वारा कराने का तथा कहीं-कहीं पिता द्वारा भी कराने का उल्लेख मिलता है। आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने अन्नप्राशन-संस्कार की निम्न विधि प्रतिपादित की हैअन्नप्राशन-संस्कार की विधि - ___ वर्धमानसूरि के अनुसार जन्म के छठवें महीने में पुत्र को एवं पाँचवें महीने में पुत्री को शुभ नक्षत्र, तिथि, वार एवं योग होने पर शिशु के चन्द्रबल को देखकर विधिपूर्वक अन्न का आहार कराना चाहिए। यह संस्कार कौनसे नक्षत्रों में एवं वारों में किया जाना चाहिए- इस पर भी मूल ग्रन्थ में विचार किया गया है। इसके साथ ही कौनसे लग्न में यह संस्कार किए जाने पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है- इसका भी इसमें उल्लेख किया गया है। __इस संस्कार हेतु सर्वप्रथम गृहस्थ गुरु शिशु के घर जाकर देश में उत्पन्न होने वाले धान, फल, आदि का संग्रह करे। तत्पश्चात् उनसे अनेक प्रकार के व्यंजन बनाए। तदनन्तर अर्हत्-प्रतिमा को बृहत्स्नात्रविधि से पंचामृत-स्नान करवाकर, अर्हत्कल्प में उल्लेखित नैवेद्य-मंत्रपूर्वक अन्न, शाक, पकवान, आदि को पृथक् पात्र में संचित कर जिनप्रतिमा के सम्मुख चढ़ाए तथा सभी प्रकार के फल भी रखे। उसके बाद शिशु पर स्नात्रजल का सिंचन करे। तत्पश्चात् वे सभी वस्तुएँ, जो जिनप्रतिमा के सम्मुख चढ़ाई गई थीं, उसी प्रकार की सब वस्तुएँ अमृताश्रव-मंत्रपूर्वक गौतमस्वामी की प्रतिमा, कुल- देवता के मंत्र से कुलदेवता को तथा कुलदेवी के मंत्र से गोत्रदेवता के समक्ष चढ़ाए। तदनन्तर कुलदेवी के नैवेद्य २६० देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-२०२, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८० ' देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-२०२, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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