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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री आचारदिनकर के अनुसार श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार शुचिकर्म के दिन या उसके दूसरे या तीसरे दिन, अथवा अन्य किसी शुभ दिन में शिशु के चंद्रबल को देखकर किया जाता है। जैन-आगम-ग्रन्थ कल्पसूत्र आदि के अनुसार- अशुचि का निवारण करने के बाद जन्म से बारहवें दिन यह संस्कार किया जाता है, परन्तु उनमें इसकी विधि नहीं बताई गई है। दिगम्बर-परम्परा में जन्म के बारह दिन के बाद जो भी दिन माता-पिता और पुत्र के अनुकूल हो, सुख देने वाला हो, उस दिन नामक्रिया-संस्कार करने का उल्लेख मिलता है। वैदिक-परम्परा में नामकरण-संस्कार कब किया जाए ? इसे लेकर वैदिक-विद्वानों में मतभेद हैं। आपस्तम्ब, बौधायन, भारद्वाज एवं पारस्कर ने नामकरण के लिए दसवाँ दिन निर्धारित किया है। याज्ञवल्क्य ने जन्म के ग्यारहवें दिन नामकरण करने को कहा है। बौधायन-गृह्यसूत्र में दसवाँ या बारहवाँ दिन तथा हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र में बारहवाँ दिन नामकरण-संस्कार के लिए माना है।२८० इसी प्रकार अन्य विद्वानों के भी इस सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं, जिनकी चर्चा विस्तार के भय से यहाँ नहीं कर रहे हैं। गृह्यसूत्रों के अनुसार सामान्यतः नामकरण-संस्कार शिशु के जन्म के पश्चात् दसवें या बारहवें दिन सम्पन्न किया जाता था। इसका एकमात्र अपवाद है- गुह्यनामकरण, जो कतिपय विद्वानों के अनुसार जन्म के पश्चात् दसवें दिन से लेकर द्वितीय वर्ष के प्रथम दिन तक कभी भी किया जा सकता है। इस परम्परा में श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति ही इस संस्कार को अशुभ दिनों, यथा- संक्रांति, ग्रहण या श्राद्धपक्ष में सम्पन्न करना उचित नहीं माना गया है। श्वेताम्बर-परम्परा में८२ इस संस्कार के अन्तर्गत शुभ-आसन एवं शुभ स्थान पर पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए बैठने का निर्देश किया गया है, जो इस संस्कार के प्रति पूज्यता का भाव प्रदर्शित करता है। दिगम्बर-परम्परा में भी २७८ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-आठवाँ, पृ.-१४, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२ २७६ कल्पसूत्र, भद्रबाहुविरचित, अनु.-विनयसागर, पृ.-१५३, प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर, द्वितीय संस्करण, सन् १९८४ २८० देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१६६, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १९८०. २हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (द्वितीय परिच्छेद), पृ.-१०८, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण - १६६५. २६२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-आठवाँ, पृ.-१३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् 9૬૨૨ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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