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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 153 इस संस्कार को करने से पूर्व सिद्ध परमात्मा की पूजा का उल्लेख किया गया है।२८३ इसी प्रकार वैदिक-परम्परा में इस संस्कार के पूर्व गणपतिपूजा, मातृकापूजन आदि करने का निर्देश मिलता है। श्वेताम्बर-परम्परा के इस संस्कार में जिस प्रकार ज्योतिष द्वारा जन्मलग्न को शुभपट्ट पर लिखकर स्थान-स्थान पर ग्रहों को स्थापित करके द्रव्य एवं मुद्राओं से लग्न एवं ग्रहों की पूजा करने का जो विधान आचारदिनकर में मिलता है, उस प्रकार की क्रियाविधि दिगम्बर एवं वैदिक-परम्पराओं के ग्रन्थों में हमें देखने को नहीं मिलती है। श्वेताम्बर-परम्परा में लग्न एवं ग्रहों की पूजा के पश्चात ज्योतिषी लग्न का सम्पूर्ण वर्णन कुंकुम अक्षर से पत्र में लिखकर कुलज्येष्ठ को अर्पण करता है तथा जन्मनक्षत्र के अनुसार नामाक्षर बताता है। तत्पश्चात् गृहस्थ-गुरु सर्वसम्मति से परमेष्ठीमंत्र का स्मरण करते हुए कुलवृद्धा के कान में जाति एवं कुलोचित नाम कहता है। फिर सभी आडम्बरपूर्वक मन्दिर जाते हैं, वहाँ जाकर परमात्मा की पूजा करते हैं, फिर उसके बाद परमात्मा के समक्ष नाम प्रकट करते हैं। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में इस प्रकार की विधि का उल्लेख हमें नहीं मिला है। साथ ही श्वेताम्बर-परम्परा में निर्दिष्ट मण्डलीपूजा, गुरु की पूजाविधि, वासक्षेप ग्रहण करना, यतिगुरु द्वारा वासक्षेप को ऊँकार, ह्रींकार, श्रींकार सन्निवेश द्वारा कामधेनु-मुद्रा से वर्धमानविद्या का जाप करते हुए माता एवं शिशु के सिर पर डालना, बालक को चन्दन का तिलक करके उस पर अक्षत लगाकर नामकरण करना, यतिगुरु को चतुर्विध आहार, वस्त्र, पात्र, आदि का दान देना, आदि महत्वपूर्ण क्रियाओं का जो उल्लेख किया गया है,८५ वह दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में जिनेन्द्रदेव के एक हजार आठ नामों के समूह से घटपत्र की विधि२८६ से कोई एक शुभनाम ग्रहण करके नामकरण करने का उल्लेख २८३ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. डॉ. पन्नालाल जैन, (भाग-२), पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४७, भारतीय ज्ञानपीठ सातवाँ संस्करण २०००. २८" देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८६, उत्तरप्रदेश हिन्दी ___ संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. २८५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-आठवाँ, पृ.-१५, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२. २८६ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु.-डॉ. पन्नालाल जैन, (भाग-२), पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४७, भारतीय ज्ञानपीठ सातवाँ संस्करण २०००. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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