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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
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करने का निर्देश दिया गया है। २७४ वैदिक - परम्परा में यह संस्कार कब किया जाना चाहिए - इस सम्बन्ध में मतभेद हैं। गृह्यसूत्रों के सामान्य नियम के अनुसार नामकरण - संस्कार शिशु के जन्म के पश्चात् दसवें या बारहवें दिन सम्पन्न किया जाता था, किन्तु परवर्ती विकल्प के अनुसार नामकरण जन्म के पश्चात् दसवें दिन से लेकर द्वितीय वर्ष के प्रथम दिन तक सम्पन्न किया जा सकता है। इसी प्रकार इस सम्बन्ध में और भी मतभेद हैं, जिनका वर्णन यहाँ स्थानाभाव के कारण नहीं किया जा रहा है।
संस्कार का कर्त्ता
आचारदिनकर के अनुसार श्वेताम्बर - परम्परा में यह संस्कार जैन - ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है, दिगम्बर - परम्परा में भी यह संस्कार आदिपुराण द्वारा निर्दिष्ट योग्यता के धारक जैन-ब्राह्मणों द्वारा करवाया जाता है। वैदिक-परम्परा में भी यह संस्कार ब्राह्मण के द्वारा करवाया जाता है।
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आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने नामकरण - संस्कार की निम्न ि प्रतिपादित की है
नामकरण - संस्कार की विधि
वर्धमानसूरि के अनुसार मृदु, ध्रुव एवं क्षिप्र संज्ञक नक्षत्रों में बालक का नामकरण - संस्कार करें। गुरु एवं शुक्र के चतुर्थ स्थान में होने पर नामकरण - संस्कार करना शुभ कहा गया है। गृहस्थ- गुरु शुचिकर्म के दिन या अन्य शुभ दिन में आसन पर पंचपरमेष्ठी - मंत्र का स्मरण करते हुए सुखपूर्वक बैठे। तदनन्तर शिशु के पितृपक्ष के लोग विधिपूर्वक गृहस्थगुरु, कुलपुरुषों, कुलवृद्धाओं एवं कुल की स्त्रियों को समक्ष बैठाकर ज्योतिषी को जन्मलग्न का प्ररूपण करने हेतु कहें। ज्योतिषी जन्मलग्न का पूजन करे तथा उसके बाद नवग्रहों की पूजा करे। तत्पश्चात् ज्योतिषी जन्मलग्न कहकर तथा लग्न का सम्पूर्ण विवरण कुंकुंम - अक्षरों से पत्र में लिखकर शिशु के कुलज्येष्ठ को अर्पण करे । तदनन्तर पिता, आदि ज्योतिषी को दान-दक्षिणा दें। फिर ज्योतिषी जन्मनक्षत्र के अनुसार नामाक्षर बताकर अपने घर जाए ।
आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. डॉ. पन्नालाल जैन, ( भाग-२), पर्व - अड़तीसवाँ, पृ. २४८, भारतीय ज्ञानपीठ सातवाँ संस्करण २०००.
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२७५ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठं (द्वितीय परिच्छेद), पृ. १०७, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण
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