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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन विज्ञानेश्वरप्रणीत मिताक्षराटीका में इस संस्कार को एक बार ही सम्पादन करने के लिए कहा गया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों परम्पराओं में यह संस्कार अपनी-अपनी मान्यता के अनुरूप किया जाता है, पर इस संस्कार का प्रयोजन श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार शरीर में पूर्णीभाव प्रमोदरूप स्तनों में दूध की उत्पत्ति के सूचकार्थ है, तो वैदिक-परम्परा के अनुसार पुत्र की प्राप्ति करना ही है। श्वेताम्बर-परम्परा में इस विधि का विवेचन सरल ढंग से किया है। यद्यपि दिगम्बर-परम्परा में वैदिक-परम्परा में बताई गई विधि से यह विधि कुछ विस्तृत है, परन्तु इसमें कर्ता, हेतु आदि सभी निर्देश बहुत स्पष्ट दिए गए हैं। दिगम्बर-परम्परा में इस संस्कार-विधि हेतु आवश्यक सभी बातों का विवेचन नहीं किया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति वैदिक-परम्परा में भी कुछ एक दिशानिर्देश मिलते हैं, जैसे- अमुकवार, अमुकनक्षत्र, आदि में यह संस्कार करना चाहिए, इत्यादि। ज्ञातव्य है कि वैदिक-परम्परा में गर्भरक्षण-संस्कार को भी पुंसवन-संस्कार का ही एक भाग माना है। उपसंहार -
इस तुलनात्मक-विवेचन के पश्चात् हम इस संस्कार की उपादेयता, आवश्यकता एवं प्रयोजन को लेकर समीक्षात्मक-विवेचन प्रस्तुत करेंगे। हम पाते हैं कि गर्भाधान के पश्चात् किया जाने वाला यह संस्कार अपने-आप में महत्वपूर्ण है। इस संस्कार को करने का उद्देश्य ही इसकी महत्ता को उजागर कर देता है। जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि प्राचीन समय में हर युद्ध के पश्चात् पुरुषों की संख्या कम हो जाती थी, जिनकी पूर्ति करने के उद्देश्य से गर्भिणी स्त्री को इस संस्कार से संस्कारित कर पुत्रप्राप्ति की कामना की जाती थी, जिससे गर्भिणी स्त्री पुत्र को जन्म दे तथा पुरुषों की कमी न हों। दूसरा, यह भी माना जा सकता है कि उस समय पुरुष-प्रधान संस्कृति के कारण पुरुष को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था तथा पुत्र की माता को बहुमान की दृष्टि से देखा जाता था, अतः पुत्रोत्पत्ति की कामना स्वाभाविक थी, क्योंकि हर माता इस बहुमान को प्राप्त करने की इच्छा रखती थी, इसी हेतु वे इस संस्कार को सम्पन्न करती थीं।।
दिगम्बर-परम्परा में भी यह संस्कार पत्रप्राप्ति हेत नहीं, वरन गर्भ के पुष्ट होने एवं उत्तम सन्तान की कामना से किया जाता है, जिसके पीछे शायद ऐसी मान्यता रही होगी कि पुत्र या पुत्री की प्राप्ति तो कर्मानुसार होती है, पर गर्भस्थ जीव के पुष्ट होने एवं उत्तम सन्तान की प्राप्ति की कामना तो की जा सकती है। दिगम्बर ग्रन्थ सागारधर्मामृत में पुत्र की आवश्यकता बताते हुए योग्य
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