SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री दिगम्बर- परम्परा में भी सुप्रीति-संस्कार को करने के लिए मंत्रों का विधान किया है, पर यह मंत्र किस समय बोले जाना चाहिए- इसका स्पष्ट निर्देश एवं इसकी विधि न मिलने के कारण हम यह नहीं कह सकते कि यह मंत्र संस्कार करते समय, किस समय बोलें, परन्तु आदिपुराण में जो इसके मंत्र बताए गए हैं, वे इस प्रकार हैं _ २१३ 122 " अवतार कल्याणी भव, मन्दरेन्द्राभिषेक कल्याणभागी भव, निष्क्रान्ति कल्याणभागी भव, आर्हन्त्य कल्याणभागी भव, परमनिर्वाण कल्याणभागी भव । " वैदिक-परम्परा में भी इस संस्कार को करने के लिए कुछ मंत्रों का निर्देश दिया है। वीर्यवान् और बलवान् पुत्र की प्राप्ति के लिए एक जलपात्र स्त्री के अंक में रखकर उसके उदर का स्पर्श करते हुए 'सुपर्णोऽसि', आदि मन्त्र का उच्चारण किया जाता था। इस प्रकार इस संस्कार के किए जाने के समय बोले जाने वाले मंत्रों में तीनों परम्पराओं में मतभेद हैं। २१४ २१५ श्वेताम्बर - परम्परा के आचारदिनकर नामक ग्रन्थ में प्रतिपादित पुंसवन संस्कार की सम्पूर्ण विधि करने के पश्चात् कुलाचार के अनुरूप कुलदेवता, आदि की पूजा एवं संस्कार हेतु आवश्यक सामग्री का भी निर्देश दिया गया है, जबकि दिगम्बर- परम्परा एवं वैदिक परम्परा में ऐसा कोई निर्देश हमें प्राप्त नहीं होता है, परन्तु श्वेताम्बर - परम्परा में जिस प्रकार सर्वप्रथम अर्हत्पूजा करने का निर्देश मिलता है, ठीक उसी प्रकार वैदिक परम्परा में गणाधीश के साथ मातृकापूजन का निर्देश मिलता है। यह संस्कार प्रत्येक गर्भधारण के समय करना चाहिए या नहीं ? इस सम्बन्ध में जैन - परम्परा में कोई उल्लेख नहीं मिलता, पर वैदिक - परम्परा की स्मृतियों में इस प्रश्न पर भी विचार किया गया है। शौनक २६ के अनुसार यह कृत्य प्रत्येक गर्भधारण के पश्चात् करना चाहिए, जबकि याज्ञवल्क्यस्मृति' _ २१७ पर २१३ २१४ २१५ २१६ २१७ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवाद- डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व चालीसवाँ, पृ. ३०३, भारतीय विद्यापीठ, सातवाँ संस्करण - २००० । हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- पांचवाँ (द्वितीय परिच्छेद) पृ. ७४-७५, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण - १६६५ । आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय - द्वितीय, पृ. ६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२ । हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- पांचवाँ (द्वितीय परिच्छेद) पृ. ७६, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण - १६६५ । हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय - पांचवाँ (द्वितीय परिच्छेद) पृ. ७६, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण १६६५ । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy